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नैष्ठिकाचार
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विविधप्रकारादानप्रदानजालेषु दीनान् धनहीनान् पाशयित्वा कुसीदेन कुसीदस्यापि कुसीदेन च तान् निर्धनीकरोति। चौरयित्वा स्वबलेन अन्यधनं महाजनः स्वात्मानं लोके साधुकारत्वेन ज्ञापयति। परवनितादिकमपि धनबलादाहृत्य शीलवानस्मि इति ज्ञापयति। न किञ्चित् गरीयः पापमस्ति यत्तेन न क्रियते। तस्मात् सर्वप्रकारेण तं (ऋद्धेः कुमदम्) विहाय भक्त्या व्रतदानधर्मसम्यग्व्रतानां परिपालनं जिनपूजाकरणं शास्त्रसेवाकरणं ज्ञानार्जनं गुरुपादसेवाकरणं सुपात्रेषु दानं कुरु। यतः यत्करणादेव तव इष्टसिद्धिः स्वात्मकल्याणं भवति इति विज्ञेयम् ।४९।
हे भव्य पुरुषों! व्रत पालन, सुपात्रदान, दया और उदारता आदि गुणों के द्वारा ही जीवन में शान्ति और सुख की दाता सामग्री प्राप्त होती है। केवल व्यापारादि के उद्योग या पुरुषार्थ से धनादि की प्राप्ति नहीं होती। इस निश्चित सत्य को जो लोग नहीं जानते ऐसे मूर्ख ही अपने वैभव का अभिमान करते हैं।
ऐश्वर्य से उन्मत्त पुरुषों की स्थिति बहुत विचित्र होती है। वे देव, शास्त्र और गुरु जैसे परम उद्धारकों की भी अवहेलना करते हैं। जब वे परम हितकारक देव, शास्त्र और गुरु की भी अवहेलना करते है तब अन्य पुरुषों की क्या कथा कहनी है। धनोन्मत्त पुरुष ऐसा मानता है कि मैं मन्दिरों का निर्माता हूँ, मैं देवस्थानों का व तीर्थस्थानों का रक्षक हूँ। यदि मेरे पास धन है तो बहुत से मन्दिर और बहुत-सी मूर्तियाँ बन सकती हैं। मन्दिरों की पूजा-प्रतिष्ठा, रथयात्रा महाभिषेक आदि सम्पूर्ण सत्कार्य करना मेरे बाएँ हाथ का खेल है।
शास्त्र भण्डारों में यदि चूहे घुसते हैं, यदि कृमि-कीट आदि शास्त्रों को नष्ट करते हैं तो हानि क्या है? और लिखा लिये जायेंगे। धन पाने पर बहुत से पंडित और लेखक अनेक शास्त्र रचकर तैयार कर रख देंगे। मैं मुनिसंघों का संचालक हूँ। यदि मैं धन न खर्च करूँ तो मुनियों की क्या दशा होगी? मेरे धन से ही बड़े-बड़े विद्यालय विश्वविद्यालय चल रहे हैं। पैसे के लिए ही तो बड़े-बड़े विद्वान् पठन-पाठनं करते हैं।
इस प्रकार धन या वैभव तथा अधिकार का अभिमान मनुष्य को धरती पर पैर नहीं रखने देता। वह चाहता है कि मैं सबके ऊपर चलूँ। वह समझता है कि सारा संसार मेरा मुँह देखता है। सबकी दृष्टि चाहे वह गृहस्थ हो व साधु, दीन हो या श्रीमान्, बलवान् हो या निर्बल, पंडित हो या मूर्ख, उद्योगी हो या निरुद्योगी, राजा हो या रंक, पापी हो या धर्मात्मा, मेरे धन की ओर है। मैं इन सबसे बड़ा हूँ। सब मेरा मान करते हैं। मेरा निरादर कोई नहीं कर सकता। मेरा निरादर करनेवालों की खैरियत नहीं है। उसका जीवन दुष्कर हो जायगा।
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