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श्रावकधर्मप्रदीप
व्रत का परिपालन यथार्थतया नहीं कर सकते। तथापि लौकिक व्यवहार दृष्टि से स्वोपार्जित द्रव्य को अपना अधिकृत द्रव्य मानकर उससे ही अपना निर्वाह करते हैं और परकीय द्रव्य को विषतुल्य मानकर सर्वथा अग्राह्य समझते हैं। वे गृहस्थ एकदेश अचौर्यव्रत के आराधक हैं। गृहस्थ लौकिक नीति के विरुद्ध परकीय स्वल्प या महाघ द्रव्य को अत्यन्त कष्ट की अवस्था में भी बिना उसकी स्वीकृति के नहीं लेगा। यदि वह विपद्ग्रस्त होगा
और स्वोपार्जित द्रव्य से काम चलता नहीं देखेगा तो अन्य से भिक्षा लेकर, अपना स्वाभिमान खोकर व अपमान सहकर भी निर्वाह कर लेगा, पर परद्रव्य का अपहरण कदापि स्वीकार नहीं करेगा। क्योंकि वह महान् अपराध है।
__परकीय द्रव्य या जो स्वकीय नहीं है, वह उसके लिए कितना ही उपयोगी क्यों न हो, यदि वह मार्ग में पड़ा हुआ दिख जाय, उसका कोई स्वामी दृष्टिगोचर न हो, या कोई भी वहाँ देखनेवाला न हो तो भी उसे श्रावक ग्रहण नहीं करेगा। यदि किसी विशेषस्थल जैसे नदी का घाट, बाग-बगीचा, कूप का पनघट, धर्मशाला, मन्दिर या अन्य कोई विश्रामस्थल क्लब आदि में कोई अपनी वस्तु भूल जाय तो उसे भी अचौर्यव्रती ग्रहण नहीं करेगा। यदि किसी स्थान पर कोई स्वद्रव्य स्थापित कर अन्यत्र चला गया है तो उसे भी अचौर्यव्रती ग्रहण नहीं करेगा। इसी प्रकार से वे सब कार्य जो प्रत्यक्ष में चोरी नहीं कहे जा सकते पर जिनमें परद्रव्यापहरण की भावना व तदनुकूल कृति विद्यमान है चौर्य लक्षण सहित होने से चौर्य ही हैं। जैसे____ अल्पमूल्य के कृत्रिम पदार्थ बहुमूल्य के अकृत्रिम पदार्थों में मिलाकर बहुमूल्य लेकर बेच देना चोरी ही है। खरीदने के लिए बड़े-बड़े नाप तौल के मापक रखना और बेचने के लिए थोड़े नाप तौल के मापक (सेर, तखरिया, मन, पंसेरी, और गज आदि) रखना। ताकि बेचने में थोड़ी वस्तु देकर भी पराया बहुत सा माल आजाय। राज्याधिकारियों की दृष्टि बचाकर माल का चुंगी कर या अन्य प्रकार का सरकारी कर, बिक्रीकर, आयकर, और यातायात कर बचा लेने का प्रयत्न करना, बिना टिकट यात्रा करना, बिना कर चुकाए समान रेलवे, मोटर आदि से ले जाना, यह सब चोरी ही है। अथवा उक्त अभिप्रायों की सिद्धि के लिए मिथ्याभाषण करना, मिथ्या गवाही देना तथा झूठे कागज बहीखाता, नकल, बीजक व बिल्टी आदि बनाना यह सब जाल करना चोरी ही है।
अन्य पुरुषों की दृष्टि बचाकर द्रव्य लेना जैसे चोरी है वैसे ही जबरदस्ती-ज्यादती से, दबाव से व प्रभाव से भी परद्रव्यापहरण चोरी है। त्रास देने का भय, अधिकार प्रयोग
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