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नैष्ठिकाचार
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(वसन्ततिलका) सत्यं मितं हितकरं सुखदं सुवाच्यं
श्रीदं वचः प्रियकरं मयमानमुक्तम् । वाच्यं न वैरजनकं हि मिथो व्यथादं
भ्रान्तिप्रदं विपदि वाऽपि तदेव सत्यम् ।।९८।। सत्यमित्यादिः- अहिंसाव्रतपालकस्य वचनमपि परहितकारकं सत्यं भवितव्यम्। किं तत्सत्यमिति प्रश्ने सत्याह-यत् वचनं सर्वजीवानां सुखदं भवति कल्याणकारकं भवति, यच्च श्रवणे सति प्रियकर स्यात् तत्सत्यम। यच्च मदमात्सर्यविश्वासघातादिदोषपरिमुक्तं तत्स्यात्सत्यम। यच्छोतुः हितकरं स्यात् तत्सत्यमस्ति। यत्किल भ्रान्तिरहितं निभ्रान्तरूपेण तत्त्वस्वरूपप्रतिपादकं वचनमस्ति तत्सत्यमिति। यच्छ्रुत्वा श्रोत णां परस्परं वैरं कलहो वा न स्यात् तत्सत्यमिति। यन्न स्यात् कस्मैचिदपि व्यथाकारकं तत्स्यात्सत्यमिति। सत्याभिलाषिणा परमितमेव वाच्यम, अतिमौखर्येण वक्तव्ये तद्वचनमसत्यं भवति। यदि परिमितं हितकरं वचनमपि कस्यचित् अहितकरं स्यात् विपदि वा स्यात् तर्हि तस्य हिताय विपन्निवारणार्थ तद्विपरीतमपि वंचनं सत्यमेव इति सत्यस्वरूपं परिज्ञाय तदेव सुवाच्यम्।९८ ।
अहिंसा व्रत को परिपालन करनेवाला जिस प्रकार अपने मन को पवित्र रखकर अपने कर्तव्य को पालन करने के लिए निर्दोष कार्यों को ही करता है वैसे ही उसे सत्यभाषी भी होना चाहिए। सत्य क्या है? यह एक बड़ा प्रश्न है। इसकी अनेक व्याख्याएँ की जाती हैं। दर्शनशास्त्र की दृष्टि से तो जैसा का तैसा कहना सत्य है। पर यह सत्य व्यवहार के लिए सर्वथा अनुकूल नहीं पड़ता। क्वचित् कदाचित् वह निन्द्य और कलह कारक हो जाता है। जैसे, किसी एक आँख वाले मनुष्य को काना, एक खराब पैरवाले को लंगड़ा, झगड़ा करने वाले को झगडालु, और असद् व्यवहार करनेवाले को बदमाश इत्यादि शब्दों का प्रयोग दार्शनिक दृष्टि से ज्यों का त्यों वर्णन है अतः सत्य है, तथापि श्रोता को दुःखदायक व्यथा उत्पन्न करनेवाला होने से वह कथन कलह या वैर करा देता है। लोक में भी ऐसा माना जाता है कि यह व्यक्ति जो ऐसा बोलता है बड़ा मूर्ख और उद्धत है। उसे बोलने की भी सभ्यता नहीं है।
___ धार्मिक दृष्टि से ज्यों का त्यों बोलना भी सत्य है और कहीं पर वह सत्य नहीं भी है। सत्य की व्याख्या धर्मशास्त्र में इस प्रकार की है। जो वचन जीवों को सुनने पर सुखदायक हो वह सत्य है। जो परिणाम में कल्याण कारक अर्थात् हितकर हो वह सत्य है। जो श्रोता को श्रवण करने पर प्रिय हो अप्रिय न हो वह सत्य है। जो वचन विनयपूर्वक दूसरे के सम्मान की रक्षा करनेवाला हो वह सत्य है। जो वचन अपने अहंकार का पूरक
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