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श्रावकधर्मप्रदीप
भाष्या गृहातिरिक्तानां पुरुषाणां पुरस्तान्न प्रकाशनीया। भोजन-पान-यान-निधुवन-धनसंपत्तिकादिविषया-नालम्ब्य व्यापार-व्यवहारादिजीवनोपायविषयञ्चालम्ब्य गृहस्थेषु परस्परं परिस्थित्यनुसारेण यथावसरं कटुवार्तालापो भवत्येव तस्य बहिणने स्वगृहच्छिद्रप्रकाशनं भवति, स्ववैरिणो विरोधिनश्च तेन स्वलाभाय परहान्यै च प्रयतन्ते। एवं प्रसङ्गप्रस्थापक-गृहसदस्यः तदतिरिक्तगृहसदस्यानामपराधी भवति परस्परं कलहश्च जायते लोकनिन्दा स्वार्थभ्रंशश्च भवति, अतएव न बहिर्भाष्या स्वगृहवार्ता। स्वगुणलाभार्थिभिः पाक्षिकैः सदा निजात्मनिन्दैव कार्या अखिलसौख्यदात्री परप्रशंसा च; यतः परगुणान्वेषणं आत्मदोषान्वेषणं च लाभप्रदं भवति। एवमुक्तगुणविशिष्टः शिष्टपुरुष एव इह लोके प्रशस्त उच्चगोत्रकर्मबंधकश्च भवति। अत एव उभयलोकसुखप्रदा एषा नीतिरङ्गीकर्तव्या।।१४।।
पाक्षिक श्रावक का यह भी कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी को भी उत्तम शिक्षा देवे और उससे सदा प्रिय वचनों से वार्तालाप करे। यदि कोई त्रुटि हो तो मधुर शब्दों में ही उसे समझावे, कठोर शब्दों का उपयोग न करे। अपने गृह सम्बन्धी सुख-दुःख
आदि की चर्चा दूसरों से न करे, सदा अपने अवगुणों की निन्दा और दूसरों के गुणों की प्रशंसा करे, ऐसा व्यवहार उसे सुखदाई होगा।
भावार्थ- गृहस्थी एक रथ के समान है। कोई भी रथ तब तक ठीक नहीं चलता जब तक कि उसके आधारभूत दोनों पहिए समान न हों। इसी तरह गृहस्थ जीवन के पति और पत्नी ये दोनों ही प्रधान अंग हैं। ये दोनों यदि समान आयु, रूप, विद्या, सम्पत्ति
और प्रकृति वाले हों तो सम्बन्ध उत्तम चलता है। यह बात प्रायः देखी जाती है कि वर और कन्या के अभिभावक माता पिता आदि वर कन्या का रूप और सांपत्तिक अवस्था मात्र इन दो बातों का ही उनके विवाह में विचार करते हैं, शिक्षा-स्वभाव आदि के मिलान का विचार नहीं करते। शिक्षा की परीक्षा सरलता से होने पर भी स्वभाव की परीक्षा होना सरल नहीं है। स्वभाव की परीक्षा मनुष्य की तब होती है जब कुछ दिन काम पड़ जाता है, इसलिए श्रीगुरु यहाँ सर्वसाधारण के निर्वाह योग्य गृहस्थ जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी उपदेश देते हैं कि गृहस्थ को उचित है कि यदि उसकी पत्नी शिक्षित नहीं है तो वह पति द्वारा शिक्षित बना ली जावे। यह शिक्षण परस्पर मधुर शब्दों के व्यवहार पूर्वक हो तो ही लाभदायक होगा, इससे प्रकृति भी उत्तम बनेगी। यदि पत्नी शिक्षित है और पति अशिक्षित है तो पत्नी का कर्तव्य है कि मधुर वाणी के द्वारा पति को शिक्षित करे
और उसे अपने अनुरूप बनावे। शिक्षित दम्पति ही परस्पर अनुकूल स्वभाव वाले हो जाते हैं। एक शिक्षित और दूसरा अशिक्षित हो तो प्रकृति का मिलान न होने से दोनों का जीवन दुःखमय व्यतीत होता है इसलिए दोनों को एक दूसरे को एक दूसरे को शिक्षित
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