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नैष्ठिकाचार
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हे पूज्य गुरुदेव! “कुलमद" क्या वस्तु है, उसके क्या चिह्न हैं? यह मुझे स्पष्ट बताइए -
(अनुष्टुप्) भवेदुच्चकुले जन्म दानपूजादिपुण्यतः। ज्ञात्वेति दानपूजादि कार्यमुच्चकुले यतः ।।४४।। उच्चकुलमदः त्याज्यः कार्यं नोन्मत्तचेष्टितम् ।
वन्द्यः सर्वज्ञसन्देशस्तथा स्थाप्यो जनैहृदि ।।४५।।
भवेदित्यादिः- दानपूजादिपुण्यतः सत्पात्रेषु दानतः पूज्यानां पूजया च प्राणिनामुच्चकुले जन्म भवति इति ज्ञात्वा यतः उच्चकुले जन्म अस्ति अतः दानपूजादि नियमतः कार्यम् । यदि पूर्वजन्मकृतसत्पुण्येन भवतां उच्चकुले जन्म जातं चेन कुलमदः कर्तव्य इति यावत्। नास्त्यत्र कश्चित् एतज्जन्मप्रयासः। पूर्वपुण्यानुसारेणैव उच्चकुलेषु जन्म जातः, अत उच्चकुलमदः त्याज्यः। तथापि तत्करणं उन्नमत्तचेष्टितं स्यात् । तच्च न कार्यम् । यतः सर्वज्ञसन्देशः भगवतो महावीरतीर्थंकरस्य सन्देशः वन्धस्तथा स्वहृदि जनैः स्थापनीयश्च ।४४।४५।
.. उत्तम पात्र मुनि आदि को चतुर्विध दान देना तथा उनकी योग्यरीति से पूजा, विनय, सेवा और शुश्रूषा आदि करने से पुण्य का उत्पादन होता है और इस पुण्योदय से जीव का उच्चलोक प्रतिष्ठित सदाचारी माननीय कुल में जन्म होता है। यह कुलीनता पूर्व पुण्य का ही फल है। इस जन्म का कोई प्रयत्न नहीं है। तब उच्च कुल में जन्म पाने का अभिमान कैसा। तो भी यदि कोई मूढ कुल का अभिमान करे तो यह उसकी उन्मत जैसी चेष्टा है। पागलों का प्रलाप है। इससे उसकी प्रतिष्ठा घटती ही है। अतः इस चेष्टा को परित्याग कर परम पूज्य वन्दनीय सर्वज्ञ परमात्मा अर्हन्त देव का हितकर सन्देश अपने अपने हृदयों में स्थापित करना चाहिए, क्योंकि जिनोपदेश ही हमें दुःख के मार्ग से विमुख कर सुख के स्थान में पहुँचाएगा।४४।४५।
प्रश्न:-चिह्नं जातिमदस्यास्ति ब्रूहि मे सिद्धये गुरो! हे गुरो! जातिमदस्य किं लक्षणमस्ति इति तन्निराकरणसिद्धये मे कथय।
हे दयालो!जातिमद के निराकरण की सिद्धि के लिए कृपाकर जातिमद के स्वरूप का प्रतिपादन कीजिए
(अनुष्टुप्) देवशास्त्रगुरूणां ये सेवां कुर्वन्ति भक्तितः । लभन्ते श्रेष्ठजातिं ते सखं को मान्यतामपि ।।४।।
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