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पाक्षिकाचार
पराधीनता सचमुच में अत्यन्त कष्टदायक है। पशु, पक्षी और कीड़े-मकोड़े भी क्षणमात्र को प्राप्त होनेवाली परतन्त्रता को सहन करना पसन्द नहीं करते। यदि किसी पक्षी को आप पिंजड़े में बन्द कर दें तो वह छटपटायगा और भागने का अवसर पाते ही भाग जायगा। हाँ, जिसे पराधीनता सहते-सहते युग बीत गया हो और जो स्वातंत्र्यसुख को विस्मरण कर चुका हो वह भले ही पिंजड़ा छोड़कर न जावे परन्तु फिर भी यह प्रवृत्ति १० - ५ दिन ही रहेगी। जहाँ उसने कुछ दिन पिंजड़े के बाहर की हवा खाई कि उसे अपनी प्रिय स्वतंत्रता की याद होने लगती है और अपने स्वराज्य के भोग के लिए वह चल देता है। पिंजड़ा चाहे सुवर्ण का ही क्यों न बना हो, तथा उसे रोज दूध, चावल और मिष्ठान ही क्यों न खिलाया जाता हो किन्तु पक्षी पराधीनता के दुःख के आगे इन सुखों को हेय समझता है। उसे पराधीन रखनेवाला व्यक्ति चाहे कितने ही प्रेम से रखे, दुलार करे, सुखी बनाने का प्रयत्न करे, पर ये सब बातें स्वातंत्र्य सुख के चरणों की धूलि को भी स्पर्श नहीं करतीं ।
पक्षी को अपने वनस्थली, रम्यवृक्षावली, सरोवर का किनारा, निर्मल आकाश में पंक्तिबद्ध हो स्वच्छन्दता से उड़ना, एक-एक दाना ढूँढ़कर चुगना व अपने बच्चों को चुगाना यह सब जितना भाता है उतना पिजड़े में बैठकर मिष्ठान खाना नहीं भाता। उस स्वाधीन सुख के सामने वह इस पराधीन सुख को महान् दुःख का प्रतीक समझता है। पक्षियों की तरह पशु भी बन्धन में रहना पसन्द नहीं करते। वे बन्धन को तोड़कर भाग जाना पसन्द करते हैं। गाय, भैंस, घोड़ा, बैल, बकरी, ऊँट, हाथी और हिरण आदि कोई भी पशु बन्धन में बद्ध नहीं रहना चाहते। पालतू पशु यद्यपि जीवन के प्रथम क्षण से ही बंधन में रहे हैं, उन्होंने पराधीन रहकर ही अपनी जिन्दगी गुजारी है, उनका अपना कोई निजी स्थान नहीं, जहाँ वे सानंद स्वतन्त्र रह सकें तो भी वे बन्धन से छूट जाना चाहते हैं।
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कीड़े मकोड़े भी अपने स्वतंत्र मार्ग से चलना पसंद करते हैं। चाहे वे किसी खतरे के स्थान में ही क्यों न जाते हों उन्हें यदि उठाया या छेड़ा तो वे छटपटाकर तुम्हारे संपर्क से दूर हो जाने का प्रयत्न करेंगे।
जब इन सब प्राणियों को पराधीनता पसंद नहीं, तो मानव प्राणी जो सब प्राणियों में श्रेष्ठ समझा जाता है, वह क्यों पराधीनता पसंद करेगा? वह तो बात-बात में स्वराज्य का प्रेमी है। जबतक वह घर में है, घर में स्वराज्य चाहता है। वह यही तो चाहता है कि घर में मेरा शासन रहे, मुझे किसी के अधीन होकर न रहना पड़े। सब या तो मेरे
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