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पुराण खंड हैं-ब्रह्मखंड, प्रकृतिखंड, गणेशखंड, और कृष्णजन्मखंड । कृष्ण के आदेशानुसार प्रकृति दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, सावित्री और राधा के रूप में परिवर्तित होती है। इसमें शिव के पुत्र गणेश को कृष्ण का अवतार माना गया है। मार्कण्डेयपुराण में इन्द्र, ब्रह्मा, अग्नि और सूर्य को मुख्यता दी गई है । इसमें महाभारत के पात्रों के आचार-विचार पर किए गए प्रश्नों का उत्तर दिया गया है। इसमें देवी दुर्गा की प्रशंसा में देवी-माहात्म्य दिया हुआ है। भविष्यपुराण में भविष्य के विषय में भविष्यवाणियाँ हैं । इसमें चारों वर्णों के कर्तव्यों और सूर्य, अग्नि तथा नागदेवों की पूजा का वर्णन है। इसी पुराण का परिशिष्ट भविष्योत्तरपुराण है, जिसमें धार्मिक कार्यों की विधि दी हुई है । वामनपुराण विष्णु के वामन रूप में अवतार का वर्णन करता है । इसमें लिंग की पूजा का वर्णन है । इसमें शिव और पार्वती के विवाह का भी वर्णन है । ब्रह्मपुराण का दूसरा नाम आदिपुराण है। इसका लेखक व्यास को माना जाता है । इसमें उड़ीसा के तीर्थों का महत्त्व वर्णित है। इसमें सूर्य को गिव कहा गया है और उसकी महत्ता का वर्णन किया गया है। इसका एक परिशिष्ट भी है । उसे सौरपुराग कहते हैं । इस पुराण में पुरी के समीप कोणार्क में १२४१ ई० के बाद बने हुए सूर्य-मन्दिर का उल्लेख है ।
मत्स्यपुराण में पर्यो, तीर्थों, शकुन, शैवों और वैष्णवों के द्वारा माने जाने वाली विधियों का वर्णन है। इसमें दक्षिण भारत, नाट्यशास्त्र, जैनधर्म, बौद्धधर्म, नरसिंह आदि उपपुराणों और आन्ध्र वंशावली का उल्लेख है। इसमें भवन-निर्माण, दक्षिणभारतीय वास्तुकला और मूर्तिकला का वर्णन है । कूर्मपुराण की पहले चार संहिताएँ थीं, परन्तु अब इसमें केवल एक ब्राह्मीसंहिता है । इसमें ६ सहस्र श्लोक हैं । इसमें शिव के अवतार का वर्णन है । इसमें ईश्वरगीता और व्यासगीता हैं । इन दोनों गीतात्रों के अनुसार समाधि और कर्तव्य-पालन ज्ञान-प्राप्ति के साधन हैं। लिंगपुराण शिव के २८ अवतारों का वर्णन करता है। इसमें धार्मिक विधियों का वर्णन है। शिवपुराण अपने विशाल ग्रन्थ वायुपुराण का एक भाग माना जाता है । इसमें १२ सहस्र श्लोक