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संस्कृत साहित्य का इतिहास भाई भर्तृहरि तथा शृङ्गारशतक का रचयिता भर्तृहरि ये तीनों एक ही व्यक्ति माने जाते हैं । ये तीनों एक ही व्यक्ति हैं, इसका कोई प्रमाण नहीं है । विक्रमांकदेवचरित के रचयिता बिल्हण ( १०८० ई० ) ने चौरपंचाशिका नामक गीतिकाव्य ५० श्लोकों में लिखा है । यह कहा जाता है कि वह अपने आश्रयदाता की कन्या पर आसक्त था । जब राजा को यह ज्ञात हुआ तो उसने उसे फाँसी की आज्ञा दी । जब वह फाँसी के लिए ले जाया जा रहा था, उस समय उसने यह गीतिकाव्य बनाया था। उस समय राजा भी वहाँ थे और उन्होंने इस गीतिकाव्य की मार्मिकता को अनुभव करके प्राज्ञा दी कि कवि को छोड़ दिया जाय । इस गीतिकाग्य में प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ अनुभव किए हुए आनन्द को स्मरण करता है । __ बंगाल के राजा लक्ष्मणसेन (११६६ ई.) ने जिन कवियों को आश्रय दिया था, उनमें एक जयदेव भी था । उसके अन्य प्राश्रित कवि धोयी, उमापतिधर, शरण और गोवर्धन थे। अत: जयदेव का समय १२०० ई० के लगभग है । जयदेव ने २० सर्गों में गीतगोविन्द नामक गीतिकाव्य बनाया है । उसका जन्म उड़ीसा के किन्दुबिल्व नामक स्थान में हुआ था । इसकी सूचना गीतगोविन्द के तृतीय अध्याय के दसवें श्लोक से मिलती है। अध्यायों का नाम नायक के आचरणों के अनुसार रखा गया है । जैसे; अक्लेशकेशव, मुग्धमधुसूदन, नागरनारायण, सानन्ददामोदर आदि । इसमें कृष्ण. राधा और राधा की सखियों के मध्य वार्तालाप के रूप में कृष्ण और राधा के प्रेम का वर्णन किया गया है । कतिपय स्थलों पर इसमें एक व्यक्ति की ही गीतात्मक उक्ति है। प्रत्येक गीत कतिपय विभागों में विभक्त है। प्रत्येक विभाग में आठ पद हैं। अतएव इसको अष्टपदी भी कहते हैं । प्रत्येक गीत के लिए लय दिए गए हैं । नदनसार गीत को गाया जाता है । अन्तरा को साथ ही गाया जाता है । इसमें बड़ी चतुरता के साथ संगीत, गान, वर्णन और भाषण को समन्वित किया गया है । यह सब साभिप्राय किया गया है । यह कहा जाता है कि यह शुद्ध नाटक और
१. Collected works of R. G. Bhandarkar Vol. II पृष्ठ, ३४६