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संस्कृत साहित्य का इतिहास
नायिका है । पुष्पदूषितक में मूलदेव के मित्र समुद्रदत्त के प्रेम का वर्णन है । पाण्डवानन्द महाभारत पर आश्रित है और चलितराम रामायण पर आश्रित है ।
क्षेमेन्द्र ( १०५० ई०) ने बहुत से ग्रन्थ लिखे हैं । उनमें से कुछ नाटक हैं । इनमें से अधिकांश नष्ट हो चुके हैं । क्षेमेन्द्र ने साहित्यशास्त्र पर जो ग्रन्थ लिखे हैं, उनमें उसने इन नाटकों के उदाहरण दिये हैं, उनसे इनका नामादि ज्ञात होता है । उसके नाटकों में से चित्रभारत और कनकजानकी दो मुख्य ज्ञात होते हैं । ये दोनों नाटक क्रमशः महाभारत और रामायण पर आश्रित हैं । विल्हण ( १०८० ई०) ने एक कर्ण सुन्दरी नाम की नाटिका लिखी है । इसमें अनहिलवाद के कामदेव त्रैलोक्यमल्ल का बड़ी प्रा में कर्णाट की राजकुमारी मियनल्लदेवी के साथ विवाह का वर्णन है । शंखधर कविराज ने १२ वीं शताब्दी ई० के प्रारम्भ में एक प्रहसन लटकमेलक लिखा है । लगभग इसी समय पद्मचन्द के पुत्र यशश्चन्द्र ने मुद्रितकुमुदचन्द्र नामक नाटक लिखा है । इसमें उसने एक शास्त्रार्थ को नाटकीय रूप दिया है, जिसमें श्वेताम्बर देवसूरि ने दिगम्बर कुमुदचन्द्र को परास्त कर दिया था । यह घटना १९२४ ई० में घटित हुई थी । इसी शताब्दी में कांचनाचार्य ने एक व्यायोग नाटक धनंजय विजय लिखा है । उसका दूसरा नाम कांचनपंडित था । इसमें विराट के नगर से गायों को चुराने के इच्छुक कौरवों पर ग्रर्जुन की विजय का वर्णन है । रामचन्द्र जैन हेमचन्द्र ( १०८८-१९७२ ई०) का काणा शिष्य था । उसने लगभग एक सौ ग्रन्थ लिखे हैं । उसके नाटकों में से ये प्रसिद्ध हैं-- (१) नलविलास । इसमें सात अङ्क हैं । इसमें नल का जीवन वर्णित है । ( २ ) निर्भयभीम | इसमें भीम के पराक्रमों का वर्णन है । यह व्यायोग नाटक है । ( ३ ) सत्यहरिश्चन्द्र । इसमें हरिश्चन्द्र की सत्य-प्रतिज्ञा का वर्णन है । इसमें ६ अङ्क हैं । ( ४ ) कौमुदीमित्रानन्द | इसमें दस अङ्क हैं । यह एक कहानी पर आश्रित है । रामचन्द्र परिष्कृत और प्रोजयुक्त वर्णन में प्राचार्य है ।