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काव्य और नाट्य शास्त्र के सिद्धान्त
३.१
विषय पर उसी समय कविता बनावे, किसी अन्य कवि के द्वारा बनाये हुए अपूर्ण श्लोक को पूर्ण करे या किसी समस्या को पूर्ण करे । इस प्रकार की घटनाओं का उल्लेख बल्लालसेन के भोजप्रबन्ध, मेरुतुंग के प्रबन्धचिन्तामणि
और मंख के श्रीकण्ठचरित में है। एक बौद्ध भिक्षुक धर्मदास ने चार भागों में विदग्धमुखमण्डन लिखा है। इसमें समस्याओं का वर्णन है। वह १३वीं शताब्दी के प्रारम्भ में हुआ था । अतएव जो कवि राजद्वार में आश्रय चाहता था, उसको विभिन्न प्रकार की रुचि वाले विद्वानों को प्रसन्न करने के लिए अनेक विषयों से परिचित होना पड़ता था। कामसूत्र ने इस विषय में कतिपय उपयोगी निर्देश दिये हैं कि कवि को किस प्रकार परिपूर्ण होना चाहिए।