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संस्कृत साहित्य का इतिहास
के अतिरिक्त मीमांसा-दर्शन पर सर्वाङ्गपूर्ण तथा व्यापक एक स्वतन्त्र ग्रन्थ शास्त्रदीपिका लिखा है। इसमें उसने कुमारिल के मत का अनुसरण किया है। इसके अतिरिक्त उसने एक बहुत उपयोगी ग्रन्थ न्यायरत्नमाला लिखा है । इसमें उसने मीमांसा-दर्शन के विशेष महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर भाट्टशाखा और प्राभाकर शाखा में जो मतभेद हैं, उनका स्पष्टीकरण किया है। शास्त्रदीपिका पर ये पाँच टोकाएँ लिखी गई हैं--(१) सोमनाथकृत मयूखमालिका, (२) अप्पयदीक्षित ( लगभग १६०० ई० ) कृत मयूखावली, (३) शंकरभट्ट ( लगभग १६०० ई० ) कृत प्रकाश, (४) निर्णसिंधु के लेखक कमलाकर भट्ट (लगभग १६१२ ई० ) कृत पालोक और (५) राजचूड़ामणि दीक्षित (१६२० ई० ) कृत कर्पूरवातिका । रामानुजाचार्य ( लगभग १७५० ई०) ने न्यायरत्नमाला की टीका नायकरत्न नाम से की है । न्यायसुधा के लेखक सोमेश्वर (लगभग १२०० ई०) ने एक स्वतन्त्र ग्रन्थ तन्त्रसार लिखा है ।
प्रभाकर के ग्रन्थों पर टीका करनेवाला सर्वप्रथम व्यक्ति शालिकनाथ ( ६५०-७३० ई० ) है। उसने चार ग्रन्थ लिखे हैं--(१) प्रभाकर को 'निबन्ध' टीका की टीका ऋविमलपंचिका और (२) दीपशिखापत्रिका । यह संभवतः प्रभाकर की विवरण टीका की टीका है। (३) शबरस्वामी के भाष्य को टोका मीमांसासूत्रभाष्यपरिशिष्ट और (४) प्रकरणपंचिका । यह मीमांसा-दर्शन को प्राभाकर शाखा को प्रसिद्ध पुस्तिका है। शबरस्वामी के भाष्य पर क्षीरसमुद्रवासि मिश्र ने भाष्यदीप नामक टोका को है । वह मानवतः प्राभाकर मत का अनुयायी था। भवनाथ ( १०५०-११५० ई० ) ने अपने ग्रन्थ नयविवेक में प्रभाकर के मतानुसार मीमांसा-दर्शन के विभिन्न अधिकरणों की व्याख्या की है।
विजयनगर के सायण के अग्रज माधव ( १२६७-१३८६ ई० ) ने पद्यबद्ध जैमिनीन्यायमाला ग्रन्थ लिखा है । उसने स्वयं इसकी टीका गद्य में को है । इसमें मोमांसा-दर्शन के विषयों का स्पष्टीकरण है . अप्पय. दीक्षित ( लगभग १६०० ई० ) ने ये ग्रन्थ लिखे हैं--(१) विधिरसायन । उसने स्वयं इसकी टीका सुखोपजीवनी लिखी है । (२) चित्रपट । (३)