Book Title: Sanskrit Sahitya Ka Itihas
Author(s): V Vardacharya
Publisher: Ramnarayanlal Beniprasad

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Page 411
________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास प्रस्थानभेद । अप्पयदीक्षित ( १५५२ - १६२४ ई० ) ने ये ग्रन्थ लिखे हैं - ( १ ) सिद्धान्तलेशसंग्रह । इसमें अद्वैतमत के सिद्धान्तों का संकलन है । (२) ब्रह्मसूत्रों की टीका न्यायरक्षामणि । ( ३ ) अमलानन्द के कल्पतरु की टीका परिमल और (४) अद्वैत - सिद्धान्त विषय न्यायमंजरी ग्रन्थ । अप्पयदीक्षित के शिष्य भट्टोजि दीक्षित ने अद्वैत मत के सिद्धान्तों पर तत्त्वकौस्तुभ नामक ग्रन्थ लिखा है । अन्नंभट्ट ( लगभग १७०० ई० ) ने ब्रह्मसूत्रों की टीका मिताक्षरा नाम से की है। ४०० विशिष्टाद्वैत इस मत के अनुसार ईश्वर, जीव और प्रकृति ये तीन सत्ताएँ हैं । इसमें भेद, अभेद और घटक श्रुतियों को प्रामाणिक माना गया है । ये वाक्य यह सिद्ध करते हैं कि वास्तविक सत्ता केवल ब्रह्म है । चित् (जीव ) और प्रचित् ( प्रचेतन जीव) उसके शरीर या प्रकार हैं । ये प्रकार परस्पर भिन्न हैं । ये चिदचित् ब्रह्म के विशेषण हैं । परन्तु ये ब्रह्म से भिन्न हैं । ब्रह्म चिदचिद् विशिष्ट है । इस मत में ब्रह्म मानते हुए को भी उसे चिदचिद्विशिष्ट कहा जाता है, ग्रतः इसे विशिष्टाद्वैत कहते हैं ।' यह संसार सत् है । जीव और प्रकृति अनेक हैं । जीव का परिमाण परमाणु के बराबर होता है । जीव और प्रकृति ब्रह्म के शरीर 1 है । जीव और प्रकृति का अस्तित्व ईश्वर के लिए है । अतएव जीव और प्रकृति को शेष कहते हैं तथा ब्रह्म को शेषी । यह शेषी शेष के ऊपर उसी प्रकार नियन्त्रण रखता है, जिस प्रकार आत्मा शरीर पर । जीव तीन प्रकार के हैंबद्ध, मुक्त, और नित्य । विष्णु, उसकी प्रिया लक्ष्मी, श्रादिशेष और गरुड़ यादि नित्य जीवों में हैं अन्य जीव बद्ध या मुक्त की कोटि में आते हैं । भगवद्गीता १. अशेष चिदचितप्रकारं ब्रह्मैक्यमेव तत्त्वम् । तत्र प्रकारप्रकारिणोः प्रकाराणां चमिथोऽत्यन्तभेदेऽपि विशिष्टैक्यादिविवक्षयैकत्वव्यपदेशः तदितरनिषेधश्च । वेदान्तदेशिक कृत न्यायसिद्धांजन, अध्याय १ । २. परगतातिशयाधानेच्छया उपादेयत्वमेव यस्य स्वरूपं स शेषः परः शेषी । रामानुजकृत वेदार्थसंग्रह, पृष्ठ २३४-२३५; ( वृन्दावन संस्करण) ।

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