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संस्कृत साहित्य का इतिहास
था । यह बहुत हो छोटो आयु में संन्यासो हो गए । भारतवर्ष में इधर-उधर बहुत घूमे और अपने मत का प्रचार करते रहे। उनका स्वर्गवास ३२ बर्ष की छोटी आयु में हो गया।
वे आगम-ग्रंथों को प्रामाणिकता को स्वीकार नहीं करते थ, क्योंकि उनमें कुछ ऐसे सिद्धान्तों और विचारों का समन्वय है, जो कि वेदों के मत के विरुद्ध है। उन्होंने ये मुख्य ग्रन्थ लिखे हैं--(१) ब्रह्मसूत्रों का भाष्य ब्रह्मसूत्रभाष्य नाम से, (२) भगवद्गीता का भाष्य भगवद्गीताभाष्य नाम से और ( ३ ) प्रमुख उपनिषदों का भाष्य । उन्होंने इनके अतिरिक्त कितने ही बड़े और छोटे ग्रन्थ लिखे हैं । इन ग्रन्थों का मुख्य उद्देश्य है, अद्वैत मत का समर्थन और प्रतिपादन । उनमें से प्रमुख ग्रन्थ ये हैं--प्रात्मबोध, दशश्लोको, अपरोक्षानुभूति, प्रपंचसार, उपदेशसाहस्रो, विबेचूडामणि, प्रश्नोत्तररत्नमालिका और विष्णुसहस्रनामभाष्य आदि। ___ सुरेश्वर ने दो ग्रन्थ लिखे हैं--वृहदारण्यकोपनिषद्वार्तिक और नैष्कर्म्यसिद्धि । कुछ विद्वान् सुरेश्वर और मण्डनमिश्र को एक ही व्यक्ति मानते हैं। उसका समय ६२० ई० से ७०० ई० माना जाता है। सुरेश्वर के साथ में शंकराचार्य के चार शिष्य थे। पद्यपाद ने शंकराचार्य कृत ब्रह्मसूत्रभाष्य की टीका को है । तोटक श्रुतिसारसमुद्धरण का लेखक है। शंकर द्वारा कहे गये अविद्या-सिद्धान्तों पर एक छन्दोबद्ध ग्रन्थ है । अद्वैत पर हस्तामलकाचार्य ने विवेकमंजरी नामक ग्रन्थ लिखा है । शंकराचार्य के ब्रह्मसूत्रभाष्य को ये पाँच टीकाएँ हुई हैं-(१) शंकराचार्य के शिष्य पद्मपाद (६२५-७०५ ई०) कृत पंचपादिका टीका ( २ ) वाचस्पति मिश्र ( ८५० ई०) कृत भामती टीका, (३) अनुभूतिस्वरूपाचार्य (लगभग १००० ई०) कृत प्रकृतार्थविवरण टीका, (४) प्रानन्दगिरि (लगभग १२५० ई०) कृत न्यायनिर्णय टीका और (५) चित्सुख ( लगभग १२२५ ई० ) कृत भाष्यभावप्रकाशिका टीका। शंकराचार्य के भगवद्गीता और उपनिषद्भाष्य की टीका आनन्दगिरि (लगभग १२५० ई०) ने को है । वाचस्पति मिश्र ने मण्डनमिश्र की ब्रह्मसिद्धि की टीका अपने ग्रन्थ तत्त्वसमीक्षा में की है। वह ग्रन्थ अब अप्राप्य है ।