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संस्कृत साहित्य का इतिहास
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का निर्माण नहीं किया जा सकता है । अतएव मैक्समूलर ने कहा है कि "विश्व का सम्पूर्ण प्रतीत का इतिहास उसके लिए अन्धकारमय होगा, जो यह नहीं जानता कि उससे पूर्ववर्ती लोगों ने उसके लिए क्या किया है। परिणामस्वरूप आगामी पोढ़ी के लिए वह भी किसी प्रकार का कोई शुभ कार्य नहीं करेगा ।' यह अत्यन्त अनुचित है कि वर्तमान युग को चकाचौंध से अन्धे होकर हम अपने प्रतीत गौरव को हँसी करें | संसार में कोई भी देश अपने प्रतोत गौरव को निन्दा करके तथा दूसरों के द्वारा उच्चरित अपनी होनावस्था का वर्णन करके कभी उन्नत नहीं हो सकता है । भारतवर्ष को अपनो मर्यादा और अपने व्यक्तित्व का स्थापित करना है । संस्कृत साहित्य के अध्ययन के बिना भारतवर्ष का सांस्कृतिक महत्व स्थापित नहीं हो सकता है । मैक्समूलर ने संस्कृत के महत्व और भारतवर्ष के गौरव पर जो अपने विचार प्रकट किए हैं उनका यहाँ उल्लेख कर देना अनुचित न होगा । उसने अपने ग्रन्थ 'भारतवर्ष हमें क्या शिक्षा दे सकता है' में लिखा है -- " वर्तमान समय का कोई भो ज्वलन्त प्रश्न लोजिए, जैसे -- लोकप्रिय शिक्षा, उच्च शिक्षा, विधानसभात्रों में प्रतिनिधित्व, नियमों का विधानीकरण, अर्थ-विनिमय, दोनरक्षा नियम और सके अतिरिक्त किसी बात को शिक्षा देनी हो या प्रयत्न करना हो, कोई चीज देखनी हो या पढ़नी हो तो भारतवर्ष के भण्डार को देखो । वैसा भण्डार कहीं नहीं है । वह तुम्हारी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा, वही संस्कृत जिसका अध्ययन प्रारम्भ में कठिन और अनुपयोगी प्रतीत होता है, यदि उसका ही अभ्यास कुछ समय करें तो वह तुम्हारे सम्मुख विशाल साहित्य उपस्थित करेगा, जो अज्ञात और अप्रकट है । वह उसके गूढ़ विचारों में अन्तरदृष्टिपात के लिए प्रेरणा देगा, जैसे गूढ़ विचार उससे पूर्व कभी सुने भी न हों
१. Maxmuller: What can Indian teach us. पृष्ठ १७
२. पंडित बलदेव उपाध्याय : वेदभाष्यभूमिकासंग्रह की भूमिका, पृष्ठ ३ और ४