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परिशिष्ट रामायण पर आश्रित ग्रन्थ वाल्मीकि को आदिकवि माना जाता है। विषय-चयन तथा लेखन-शैली में उन्होंने परवर्ती कवियों का पथ-प्रदर्शन किया। उनके गौरव का कारण है राम को काव्य का नायक चुनना । उन्होंने स्वयं इस प्रकार के चयन का समर्थन किया। देखिए :-न ह्यन्योऽर्हति काव्यानां यशोभाग्राघवादृते ।
रामायण-उत्तर० ९८-१८ उत्तरवर्ती लेखकों द्वारा वाल्मीकि की प्रशस्ति में लाई गई निम्नलिखित सूक्तियाँ उल्लेखनीय हैं१. अहो, सकलकविसार्थसाधारणी खल्वियं वाल्मीकीया सुभाषितनीवी ।
अनर्घराघव--प्रस्तावना २. मधुमयभणितीनां मार्गदर्शी महर्षिः
रामायणचम्पू १-८ ३. स वः पुनातु वाल्मीकेः सूक्तामृतमहोदधिः । ओंकार इव वर्णानां कवीनां प्रथमो मुनिः ।
रामायणमंजरी ४. लंकापतेः संकुचितं यशोयत्
यत्कीर्तिपात्रं रघुराजपुत्रः । स सर्व एवादिकवेः प्रभावो न कोपनीयाः कवयः क्षितीन्द्रैः ॥
विक्रमाङ्कदेवचरित १-२७ ५. मुख्यमुनीनामिव तं कवीनां
नमामि येनागमकोविदेन । स्वकाव्यदेवायतनेऽधिदेवो प्रतिष्ठिता राघवकीर्तिमूर्तिः ॥
सुरथोत्सव १-३०