Book Title: Sanskrit Sahitya Ka Itihas
Author(s): V Vardacharya
Publisher: Ramnarayanlal Beniprasad

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Page 430
________________ उपसंहार ___४१६ ने इस विषय में यह कहना प्रारम्भ किया कि जब इन विद्वानों और इनके अनयायियों ने बौद्धों के विरुद्ध धार्मिक विद्रोह प्रारम्भ कर दिया तब बौद्धोंने तिब्बत और चीन में अपनी सुरक्षा के लिए आश्रय लिया। किन्तु तथ्य इसके सर्वथा विपरीत है । जब बौद्ध लोग प्रकट रूप से हिन्दुओं से शास्त्रार्थ करने में असमर्थ हो गए, तब प्रकट रूप से पराजय से बचने के लिए और अपने धर्म को पूर्णतया नष्ट होने से बचाने के लिए तिब्बत और चीन में भाग गए। ये ही पाश्चात्य विद्वान् हैं जिन्होंने यह मन्तव्य स्थापित किया कि आर्य लोग बाहर से भारतवर्ष में आये हैं । इस मत को बहुत से भारतीय विद्वानों ने बिना विरोध और विवाद के सत्य मानकर स्वीकार कर लिया है। ऐतिहासिक महत्त्व की लिखित सामग्री के अभाव का अनुचित लाभ उठाकर पाश्चात्य विद्वानों ने ऐतिहासिक घटनाओं को भी असत्य बताया है और भारतीय परम्परा के द्वारा जो तिथियाँ या काल स्वीकृत हैं. उनको काल्पनिक माना है । उनके ये निर्णय सत्यता से बहुत दूर हैं । भारतीयों ने कुछ चीजों को ग्रन्थ के रूप में रखना उचित समझा और कुछ बातों को केवल स्मृति में रक्खा । रामायण और महाभारत में जो घटनाएँ उल्लिखित हैं वे सत्य हैं । परम्परा के अनुसार महाभारत का समय ३१०० ई० पू० है यह समय विवादास्पद नहीं है । लिखित साहित्य की अपेक्षा किसी जाति की स्मरणशक्ति अधिक विश्वसनीय और पुष्ट होती है। सम्पूर्ण देश त्रुटि नहीं कर सकता है । पाश्चात्य विद्वानों ने जो एक स्तर स्थापित किया है, उससे इन तथ्यों की माप भले ही न हो सके, परन्तु इस आधार पर इन तथ्यों को असत्य नहीं कह सकते हैं। भारत का एक विचित्र प्रकार रहा है कि किस प्रकार वे भावी पीढ़ी के लिए प्राचीन सामग्री सुरक्षित रखते हैं । भारतवर्ष में जो सामग्री उपलब्ध है, उसके आधार पर भारत का इतिहास नवीन ढंग से लिखा जाना चाहिए तभी भारतवर्ष का गौरवमय अतीत ठीक ढंग से समझा जा सकता है । अतीत को जाने बिना भविष्य

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