Book Title: Sanskrit Sahitya Ka Itihas
Author(s): V Vardacharya
Publisher: Ramnarayanlal Beniprasad

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Page 429
________________ ४१८ संस्कृत साहित्य का इतिहास अनुभवों के द्वारा अध्ययन किया गया और राज्य संचालन के लिए यह सर्वोत्तम प्रकार माना गया कि प्रजातन्त्र सरकार हो और उसका मुख्य राजकीय-परम्परागत राजा हो । भौतिकवाद के विकास के दुष्परिणामों का ज्ञान भारतीयों को था । मत्स्यपुराण में वर्णन आता है कि राक्षस प्रकाश से निरपराध स्त्रियों और बच्चों पर आक्रमण करते थे । यह ज्ञात नहीं है कि वे अपने अस्त्र और शस्त्र किस प्रकार बनाते थे । वैज्ञानिक विषयों में मुख्यतया प्रौजारों का उपयोग होता था । यह संम्भव है कि जिन वैज्ञानिकों ने अस्त्रों और शस्त्रों का आविष्कार किया था, उन्होंने ही इनका दुरुपयोग होते देखा और भावो जगत् को विनाश से बचाने की सद्भावना से प्रेरित होकर उन अस्त्रों और शस्त्रों को नष्ट कर दिया । आधुनिक काल में जब से यूनानी, यवन और यूरोप के अन्य राष्ट्रों ने भारतवर्ष पर आक्रमण करना प्रारम्भ किया, तब से भारतवर्ष का सांस्कृतिक महत्त्व क्रमशः क्षीण होता गया । सभी विदेशियों ने भारत के सांस्कृतिक महत्त्व को नष्ट करने का पूर्ण प्रयत्न किया, परन्तु उनके सभी प्रयत्न निष्फल रहे । उन्होंने यह भी प्रयत्न किया कि भारत के प्राचीन गौरव को महत्त्व न दिया जाय । आधुनिक काल में पाश्चात्य विद्वानों ने यह मत प्रस्तुत किया है कि भारतवर्ष में जो कुछ भी अच्छाई है वह यूनानियों के द्वारा ही प्राप्त हुई है । उन्होंने बिना किसी प्रमाण और आधार के यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि साहित्य के सभी विभागों में ही नहीं अपितु सभी उत्तम बातों में बौद्ध लोग ही अग्रगामी रहे हैं । यहाँ पर यह स्मरण रखना चाहिए कि बौद्ध लोग बहुत समय तक हिन्दू ही थे और कुछ काल बाद उन्होंने हिन्दूधर्म में प्राप्त कुछ मंतव्यों को लेकर हिन्दूधर्म के विरुद्ध एक नवीन धर्म प्रारम्भ किया । प्रारम्भ में इस धर्म को सफलता प्राप्त हुई, क्योंकि गौतम बुद्ध और उनके अनुयायियों ने साधारण जनता को अपनी ओर आकृष्ट किया और वे लोग उनसे विवाद या तर्क करने में असमर्थ थे । जब कुमारिल, शंकर और उदयन जैसे उद्भट विद्वानों ने उनके सिद्धान्तों पर आक्रमण किए, तब उनकी सफलता समाप्त होने लगी । पाश्चात्य विद्वानों

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