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आस्तिक दर्शन और धार्मिक दर्शन वसुगुप्त का ग्रन्थ स्पन्दकारिका है। कल्लट ने इसकी टीका स्पन्दसर्वस्व नाम से की है। उत्पलदेव ( लगभग १००० ई० ) की स्पन्दप्रदीपिका और क्षेमराज ( लगभग १००० ई० ) का स्पन्दनिर्णय इस शाखा के मुख्य ग्रन्थ हैं ।
सोमानन्द ( लगभग ८५० ई० ) ने शिवदृष्टि ग्रन्थ में सर्वप्रथम प्रत्यभिज्ञा मत के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है । उत्पलदेव ने ईश्वर प्रत्यभिज्ञाकारिका ग्रन्थ लिखा है और उस पर स्वयं वृत्ति ( टीका) भी लिखी है। यह उत्पलदेव स्पन्दशाखा के उत्पलदेव से भिन्न है। यह १०वीं शताब्दी ई० के पूर्वार्द्ध में हुआ था । उसने अपनी टीका सहित ईश्वरसिद्धि तथा अन्य ग्रन्थ लिखे हैं । ध्वन्यालोकलोचन का रचयिता अभिनवगुप्त प्रत्यभिज्ञामत का सर्वश्रेष्ठ प्राचार्य है । उसके ग्रन्थों से तान्त्रिक साहित्य की अभिवृद्धि हुई है । उसके लिखे हुए ग्रन्थ ये हैंबोधपंचदशिका, मालिनीविजयवार्तिक, परात्रिशिकाविवरण, तन्त्रालोक और तन्त्रसार आदि । उसने शैवमत के दृष्टिकोण से भगवद्गीता की टीका भगवद्गीतार्थसंग्रह लिखी है। उसने परमार्थसार में शैवमत के दृष्टिकोण से सांख्यदर्शन के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन किया है । उसने उत्पलदेव की ईश्वरप्रत्याभिज्ञाकारिका की टोका ईश्वरप्रत्यभिज्ञाविमर्शिनी में की है और उसको ईश्वरप्रत्यभिज्ञाकारिकावृत्ति की टीका ईश्वरप्रत्यभिज्ञाविवृत्तिविमर्शिनी में की है । उसको अनुत्तराष्टिका, परमार्थद्वादशिका, परमार्थचर्चा और महोपदेशविंशतिका में शैवमत का प्रतिपादन है । उसने सोमानन्द की शिवदृष्टि की टीका शिवदृष्ट्यालोचन नाम से की है और प्रकीर्णकविवरण में धर्म के दार्शनिक और वैयाकरण रूप की व्याख्या की है । उसके अन्य ग्रन्थ नष्ट हो गए हैं और उनका ज्ञान केवल उद्धरणों से होता है।
शाक्तमत शाक्तमत शक्ति की पूजा को स्वीकार करता है । इस शाखा में नाद की शक्ति, मनुष्य शरीर में नाड़ियों की सत्ता, पद्मतुल्य षट्चक्रों की सत्ता