Book Title: Sanskrit Sahitya Ka Itihas
Author(s): V Vardacharya
Publisher: Ramnarayanlal Beniprasad

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Page 402
________________ प्रास्तिक दर्शन और धार्मिक दर्शन ३६१ 1 जिनकी यज्ञादि के द्वारा पूजा का वर्णन मीमांसा - सूत्रों में किया गया था । ये सूत्र जमिनि के बनाए हुए थे । ये अब नष्ट हो चुके हैं । ब्रह्मसूत्रों के रचयिता बादरायण मुनि हैं । कुछ विद्वान् बादरायण और पराशर के पुत्र व्यास को एक ही व्यक्ति मानते हैं । अन्य विद्वान् इन दोनों की एकता को स्वीकार नहीं करते हैं । इन सूत्रों का रचनाकाल ५०० ई० पू० माना जाता है । इसमें चार अध्याय हैं -- ( १ ) समन्वयाध्याय । इसके अनुसार उपनिषदें ब्रह्म के अस्तित्व को सिद्ध करती हैं । (२) अविरोधाध्याय । इसमें अन्य दर्शनों के मन्तव्यों का खण्डन किया गया है । (३) साधनाध्याय । इसमें मोक्ष के साधनों का वर्णन है । फलाध्याय । ( ४ ) इसमें उपर्युक्त साधनों के परिणामों का वर्णन है । वेदान्तदर्शन की कई शाखाएँ भगवद्गीता पर निर्भर हैं । भगवद्गीता में इन विषयों का वर्णन है -- ईश्वर, उसकी अनेकरूपता, ईश्वर और जीव का सम्बन्ध, ईश्वरोपासना के विभिन्न प्रकार, प्रकृति का स्वरूप, प्रकृति का ईश्वर और जीव से सम्बन्ध, जीवात्मा के मोक्षप्राप्ति के साधनों का वर्णन तथा जीव के पूर्ण और सुखी होने के साधनों का वर्णन । जीव को सुखी होने और मोक्षप्राप्ति के लिए तीन मार्ग हैं- ज्ञानमार्ग, कर्ममार्ग और भक्तिमार्ग | ज्ञानमार्ग के अनुसार तत्त्वज्ञान की प्राप्ति से पूर्वकृत कर्मों के फल का नाश हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है । कर्ममार्ग के अनुसार निष्काम भाव से कर्म करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है । भक्तिमार्ग के अनुसार ईश्वर की वास्तविक भक्ति से जीव मोक्ष को प्राप्त होता है । भगवद्गीता में ईश्वरार्पण पर विशेष बल दिया गया है । भगवद्गीता आस्तिकवाद का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है । यह ग्रन्थ भारतीय साहित्य का रत्न है । इस ग्रन्थ का मुख्य उद्देश्य यह शिक्षा देना है कि मनष्य परिणाम की चिन्ता न करके अपने कर्तव्य को करे । वेदान्तदर्शन के विभिन्न मत जिन ग्रन्थों पर आधारित हैं, वे हैं -- उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र और भगवद्गीता । प्रायः सभी मतों ने इन तीनों ग्रन्थों की टीकाएँ की हैं और उनमें अपने मन्तव्यों की पुष्टि की है । प्रत्येक मत ने यह प्रयत्न किया है कि वह रामायण, महाभारत और कुछ अंश तक पुराणों के उद्धरण

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