Book Title: Sanskrit Sahitya Ka Itihas
Author(s): V Vardacharya
Publisher: Ramnarayanlal Beniprasad

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Page 404
________________ आस्तिक दर्शन और धार्मिक दर्शन ३६३ वेदान्त की प्रमुख शाखाएँ ये हैं- द्वैत, अद्वैत विशिष्टाद्वैत, और शुद्धाद्वैत । वेदान्त की सामान्य शाखाएँ ये हैं -- निम्बार्क, भास्कर, यादवप्रकाश तथा चैतन्य और शिवाद्वैत । द्वैतमत यह मत उपनिषदों की भेद श्रुति पर अवलम्बित है । इस मत के प्रतिपादक ग्रन्थों में प्रभेद श्रुतियों और घटकश्रुतियों की इस प्रकार व्याख्या की गई है कि वे द्वैतमत के समर्थक हों । परमात्मा, जोवात्मा और प्रकृति ये तीनों नित्य और स्वतन्त्र सत्ता हैं । जीवों में परस्पर भेद है और प्रकृति में भी प्रान्तरिक भेद है । परमात्मा विष्णु है । उसका शरीर अप्राकृत ( प्रकृति - निर्मित नहीं ) है । वह सर्वज्ञ, सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान् है । उसकी इच्छा से ही प्रकृति जगत् के रूप में परिवर्तित होती है । जीवों में लक्ष्मी सर्वश्रेष्ठ है । वह विष्णु की पत्नी है । जीवों में वही नित्य है, अविनाशी है । अन्य जीव बद्ध ह । जीवात्मा का परिमाण परमाणु के बराबर है । जीव दो प्रकार के हैं-पुरुष और स्त्री । यह पुरुष और स्त्री का अन्तर मोक्षावस्था में भी बना रहता है । परमात्मा और जीवात्मा का सेव्य-सेवक भाव सम्बन्ध है । निर्धारित नियमों के अनुसार प्रत्येक जीव का कर्तव्य है कि वह परमात्मा विष्णु की उपासना करे । उसकी उपासना से उसका अनुग्रह प्राप्त होता है । भगवद्गीता में जो मार्ग बताए गए हैं, उनमें से भक्तिमार्ग ही इस मत में अपनाया गया है । इस मत के अनुसार तीन प्रमाण हैं-- प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द । वेद नित्य और स्वतः प्रमाण हैं । वैष्णव प्रागम प्रामाणिक ग्रन्थ हैं । पुराण भी बहुत प्रामाणिक ग्रन्थ हैं । - इस मत के संस्थापक श्रानन्दतीर्थ थे । उनका वास्तविक नाम वासुदेव था । उनके आध्यात्मिक गुरु श्रच्युतप्रेक्षाचार्य थे । उन्होंने अद्वैतसिद्धान्त का खण्डन करके द्वैतमत की स्थापना की । उनके चार शिष्य थे-पद्मनाभतीर्थ, नरहरितीर्थ, माधवतीर्थ और प्रक्षोभ्यतीर्थ । उनका समय १११६ ई० से ११६८ ई० माना जाता है । उनका यह समय अशुद्ध ज्ञात

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