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संस्कृत साहित्य का इतिहास देकर अपने सिद्धान्तों और व्याख्यानों की पुष्टि करे । कुछ दार्शनिक और धार्मिक मत उपनिषद् आदि तीनों ग्रन्नों के अतिरिक्त आगम-ग्रन्थों पर भी निर्भर हैं और कुछ मत सर्वथा आगमग्रन्थों पर ही निर्भर हैं।
आगमों को कुछ स्थानों पर तन्त्र भी कहते हैं । इनमें यह वर्णन किया गया है कि किस प्रकार देव-विशेष की पूजा करनी चाहिए और इष्टदेव के अनुसार ही किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए । आगमग्रन्थों का उदय ब्राह्मणग्रन्थों के प्रभाव से हुअा होगा। जो व्यक्ति कर्ममार्ग की अपेक्षा भक्तिमार्ग को अपनाने वाले हैं, उन्होंने ब्राह्मणग्रन्थों के प्रभाव से आगम ग्रन्थों को जन्म दिया होगा । कुछ आगमग्रन्थ महाभारत से बहुत पूर्व बन चुके थे, क्योंकि महाभारत में प्रागमों का उल्लेख मिलता है। इन आगमों में जीवन के लक्ष्य और देव-पूजा के विषय में जो बातें दी गई हैं, वे कितने ही स्थानों पर वैदिक परम्परा के विरुद्ध हैं और कई स्थानों पर उसके अनुकूल हैं। कुछ आगमग्रन्थों को संहिताग्रन्थ कहा जाता है । इससे ज्ञात होता है कि उनका सन्बन्ध वैदिकग्रन्थों से है । उनमें मुख्य रूप से चार बातों का वर्णन होता है-- ज्ञान, योग (ध्यान). क्रिया (कर्म) और चर्या (दिनचर्या) । सभी आगमग्रन्यों का मत है कि संसार सत्य है, ईश्वर जीव और प्रकृति ये तीनों उसमें विद्यमान हैं । ईश्वर संसार का स्वामी है। विभिन्न देवताओं को मान्यता देने के आधार पर आगमग्रन्थ तीन प्रकार के हैं-वैष्णव पागम, शैव पागम और शाक्त आगम ।
बोधायन ने ब्रह्मसूत्रों का भाष्य (वृत्ति) कृतकोटि नाम से किया है । बोधायन का दूसरा नाम उपवर्ष था । उसने ही मीमांसासूत्रों का भाष्य किया था। उसका समय ईसा से पूर्व मानना चाहिए । ब्रह्मनन्दी ने छान्दोग्योपनिषद् की टीका 'वाक्य' नाम से की है। ब्रह्मनन्दी का दूसरा प्रसिद्ध नाम टङ्क था। द्रमिडाचार्य ने 'वाक्य' भाष्य की टीका को है । वे सभी लेखक शंकराचार्य (६३२-६६४ ई०) से बहुत पहले हुए थे। इन लेखकों के ग्रन्थ नष्ट हो चुके है । परकालीन लेखकों ने इनके ग्रन्थों से जो उद्धरण दिए है, उनसे इन ग्रन्थों की सत्ता ज्ञात होती है ।