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मीमांसा-दर्शन
३८७ जो टीका की है, उसका नाम है त्रिपादनीतिनयन । उसका एक स्वतन्त्र ग्रन्थ अंगत्वनिरुक्ति है ।
मण्डनमिश्र ( ६१५-६६५ ई० ) कुमारिल भट्ट का समकालीन था । वह एक सुविख्यात मीमांसक और वेदान्ती था। उसके परिचय के विषय में कई सन्देहास्पद विवरण उपलब्ध होते हैं । भट्ट उम्वेक, विश्वरूप और सुरे वर उसी के नाम माने जाते हैं और उसको शंकराचार्य का सम्बन्धी बताया जाता है । उसने मीमांसा-दर्शन पर तीन ग्रन्थ लिखे हैं--विधिविवेक, भावनाविवेक और मीमांसानुक्रमणिका । न्याय, सांख्य और योगदर्शन पर विभिन्न ग्रन्थों के रचयिता वाचस्पति मिश्र ने विधिविवेक की टीका न्यायकणिका लिखी है । मीमांसा-दर्शन से संबद्ध प्रश्नों पर विचार करते समय वाचस्पति मिश्र ने मण्डन मिश्र के मन्तव्यों का अनुसरण किया है।
कुमारिल के श्लोकवातिक को ये तीन टीकाएँ हुई हैं-(१) भट्ट उम्वक (६४०-७२५ ई.) कृत तात्पर्यदीपिका (२) सुचरित मिश्र (१०००-११०० ई०) कृत काशिका और (३) पार्थसारथि मिश्र ( १०५०-११२० ई० ) कृत न्यायरत्नाकर । कुछ विद्वान् भवभूति और उम्वेक को एक ही व्यक्ति मानते हैं। अन्य विद्वान् इस विचार से सहमत नहीं हैं । तन्त्रवातिक की ये तीन टोकाएँ हुई हैं--(१) सोमेश्वर ( लगभग १२०० ई० ) कृत न्यायसुधा । इस टोका का दूसरा नाम है राणक । (२) नारायणीय के लेखक नारायणभट्ट ( लगभग १६०० ई० ) कृत निबन्धन और (३) अन्नंभट्ट ( लगभग १७०० ई० ) कृत सुबोधनी । अन्नभट्ट ने न्यायसुधा को टीका राणकोजीवनी नाम से की है टुप्टीका को दो टोकाएँ हुई हैं—(१) पार्थसारथि मिश्र ( १०५०११२० ई० ) कृत तन्त्ररत्न और (२) वेंकटम खिन् कृत वातिकाभरण । वह गोविन्द दीक्षित ( लगभग १६०० ई० ) का पुत्र था। उसका दूसरा नाम वेंकट दीक्षित था।
वाचस्पति मिश्र ( लगभग ८५० ई० ) ने एक स्वतन्त्र ग्रन्थ तत्त्वविन्दु लिखकर मोमांसा-दर्शन को बहुत बड़ी देन दो है । पार्थसारथि मिश्र (१०५०११२० ई० ) ने कुमारिल के श्लोकवातिक और टुप्टीका पर टोका लिखने