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उपवेद
३४६ कुशलता के साथ चला सकते हैं, जो बहुत आदर्शवादी या छिद्रान्वेषी नहीं है। "इस समस्त ग्रन्थ में नवीनता और सत्यता भरी हुई है । इससे ज्ञात होता है कि इसके लेखक को उन सभी विषयों का वैयक्तिक अनुभव था,. जिनका उसने बड़े आकर्षक रूप में वर्णन किया है।"१
शुक्रनीतिसार में २२०० श्लोकों में राजनीति का वर्णन है । यह एकः विशाल ग्रन्थ शुक्रनीति का संक्षिप्त संस्करण माना जाता है । इस ग्रन्थ की गैली और विषय-विवेचन के आधार पर इसका समय ईसवीय सन् से पूर्व मानना चाहिए ।
कामन्दक का नीतिसार कौटिल्य के अर्थशास्त्र पर आश्रित है। इसमें विष्णुगुप्त का उल्लेख है । इसमें बहुत से उपदेशात्मक श्लोक हैं । काव्यालंकारसूत्र के लेखक वामन को इस ग्रन्थ का ज्ञान था। इस ग्रन्थ का समय ७वीं शताब्दी ई० में मानना चाहिए । सोमदेवसूरि ने नीतिवाक्यामृत ग्रन्थ लिखा है । यह सोमदेवसूरि और यशस्तिलक का लेखक सोमदेवसूरि एक ही व्यक्ति माने जाते हैं । यह लेखक जैन होने के कारण अर्थशास्त्र के लेखक कौटिल्य: से प्रवन्ध और युद्ध-सम्बन्धी कई बातों में सहमत नहीं है। इसमें उसने शासकों को नीति विषयक उपदेश दिए हैं । हेमचन्द्र ( १०८८-११७२ ई० ) की लघ्वहनीति जैन-दृष्टिकोण से लिखी गई है । अर्थशास्त्र विषय पर अन्य ग्रन्थ ये हैं-धारा के राजा भोज ( १०४० ई० ) का युक्तिकल्पतरु, चण्डेश्वर का नीतिरत्नाकर, नीतिप्रकाशिका आदि ।
अन्य शास्त्र प्राचीन समय में शिल्पशास्त्र या वास्तुविद्या बहुत उन्नत अवस्था में थी। इस विषय पर बौद्ध और जैन विद्वानों की बहुत बड़ी देन है । धर्म और उपयोगिता इस विषय की मुख्य विशेषता हैं । दक्षिण भारत के विशाल मन्दिर, सारनाथ और अजन्ता के स्तूप विहार और चैत्य आदि प्राचीन
१. History of Indian Civilization by C. E.M. Joad. पृष्ठ ८८ ।