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नास्तिक-दर्शन
३६१ में पूर्णता प्राप्त करनी चाहिए । भिक्षुक इन गुणों का अभ्यास अपने दैनिक जीवन में विहारों ( मठों ) में रहते हुए करते हैं और गृहस्थ अपने गृहों में रहते हुए स्वार्थ-त्याग तथा भक्तिभाव के द्वारा करते हैं ।
बुद्ध वेदों को प्रमाण नहीं मानते थे । वह ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते थे। उन्होंने जगत् की उत्पत्ति और प्रलय के विषय में भी विचार नहीं किया है । उन्होंने योग की साधनात्रों को विशेषतः भावना (समाधि) को स्वीकार किया है तथा ब्रह्मचर्य के अभ्यास पर विशेष बल दिया है।
बद्ध के शिष्य विभिन्न प्रतिभा से युक्त थे। उनमें से कुछ ऐसे थे, जो विश्व के अस्तित्व को अनुभव करने के कारण शून्यतावाद को मानने को उद्यत नहीं थे । बुद्ध के उपदेशों को सूक्ष्म सत्यता तथा गम्भीर दार्शनिकता उनको बोधगम्य नहीं थो । बुद्ध के शिष्यों तथा उनके अनुयायियों के इस बौद्धिक-शक्ति-भेद के कारण बौद्ध धर्म की चार शाखाएँ प्रचलित हुई । उनके नाम हैं-वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार और माध्यमिक । बौद्ध धर्म का एक विशेष सिद्धान्त यह है कि संसार की प्रत्येक वस्तु क्षणभंगुर है । वैभाषिकों का मत है कि ज्ञान और ज्ञेय दोनों सत्य हैं। सौत्रान्तिकों का मत है कि ज्ञान सत्य है और ज्ञेय की सत्यता अनुमान के द्वारा ज्ञात होती है। योगाचार-मार्ग के अनुयायियों का मत है कि ज्ञान सत्य है और इसके अतिरिक्त अन्य कोई वस्तु सन्य नहीं है । अतएव इस शाखा को विज्ञानवादी भी कहते हैं। माध्यमिकों का मत है कि ज्ञान भी सत्य नहीं है । वे शून्यतावाद को मानते हैं । अतएव इस शाखा को 'शून्यतावादी' भी कहते हैं । वैभाषिक शाखा के प्राचीन लेखक संबभद्र और कात्यायन हैं । सौत्रान्तिक शा वा का प्रावीन लेखक कुमारलब्ध (३०० ई०) है । यह शाखा मूल बौद्धग्रन्थों पर निर्भर है । योगाचार शाखा के प्राचीन लेखक मैत्रेयनाथ और प्रार्य प्रसंग हैं । यह शाखा योग (समाधि) और प्राचार (अभ्यास) पर निर्भर है । माध्यमिक शाखा का प्राचीन लेखक आर्य नागार्जुन है । इस शाखा का मत है कि बाह्य वस्तुएँ न सर्वथा सत्य हैं और न सर्वथा असत्य । इस प्रकार