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संस्कृत साहित्य का इतिहास
तन्त्र भी एक टीका है जो अब विलुप्त हो चुकी है और जिसके लेखक का कोई पता नहीं है । रावणभाष्य, भारद्वाजवृत्ति और रावण कृत कतन्दी के विषय में कोई सूचना नहीं मिलती। इनमें से प्रथम दो ग्रन्थ तो सूत्रों पर लिखे गए भाष्य हैं और अन्तिम ग्रन्थ वैशेषिक दर्शन का एक ग्रन्थ है ।
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उदयन सबसे प्रथम लेखक है, जिसने न्याय और वैशेषिक दोनों दर्शनों पर लिखा है । उसने किरणावली के अतिरिक्त ये ग्रन्थ और लिखे हैं - ( १ ) वाचस्पति मिश्र के ग्रन्थ न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका की टीका तात्पर्यपरिशुद्धि | (२) न्यायकुसमाञ्जलि | यह प्रास्तिकवाद पर सर्वोत्तम ग्रन्थ है । (३) आत्मतत्त्वविवेक । इसका दूसरा नाम बौद्धधिक्कार भी है । इसमें आत्मा के अस्तित्व का वर्णन किया गया है । ( ४ ) न्यायपरिशिष्ट । इसका दूसरा नाम बोधसिद्धि है । इसमें तर्क की पद्धति दी गई है । ( ५ ) लक्षणावली । इसमें न्याय और वैशेषिक दर्शनों के विभिन्न लक्षणों का संग्रह है । लक्षणावली ग्रन्थ ६८४ ई० में लिखा गया था । उसने न्याय और वैशेषिक दर्शनों को तथा विशेषतया आस्तिकवाद को जो अनुपम देन दी है, उसके कारण उसको न्यायाचार्य की उपाधि प्राप्त हुई थी ।
कश्मीर के जयन्तभट्ट ने ε१० ई० में न्यायमंजरी है । जयन्त का दूसरा नाम वृत्तिकार भी है। न्यायमंजरी स्वतन्त्र ग्रन्थ है, साथ ही इसमें बहुत से न्यायसूत्रों की व्याख्या भी है । उनकी न्यायकलिका में विभागों की गणना है । १०वीं शताब्दी ई० में ही भासर्वज्ञ ने न्यायदर्शन पर एक स्वतन्त्र ग्रन्थ न्यायसार लिखा है । न्यायदर्शन में चार प्रमाण माने गए हैं, परन्तु इसकी यह विशेषता है कि इसमें केवल तीन प्रमाग ( प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द ) माने गए हैं और उपमान को प्रमाण नहीं माना है । इस ग्रन्थ पर अनेक टीकाएँ लिखो गयीं। उनमें न्यायभूषण एक सुप्रसिद्ध टीका है । कुछ विद्वानों के अनुसार भासर्वज्ञ इस टीका का लेखक स्वयं है । कुछ लोग इसके टीकाकार केवल भूषणकार का उल्लेख करते हैं । तो भी यह टीका
लप्त हो चुकी है । त्रिलोचन जयन्तभट्ट का समकालीन था । वह वाचस्पति
नामक ग्रन्थ लिखा न्यायदर्शन पर एक