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अध्याय ३२ नास्तिक-दर्शन
चार्वाक-दर्शन यह दर्शन भौतिकवादी है । इस दर्शन के सिद्धान्त उतने ही पुराने हैं, जितना कि मानव-जगत् । इस दर्शन के अनुसार जो वस्तु प्रत्यक्ष नहीं है, उसका अस्तित्व नहीं है । प्रत्यक्ष के अतिरिक्त और कोई अन्य प्रमाण नहीं है । वेद प्रामाणिक ग्रन्थ नहीं है । संसार में न कोई परमात्मा है और न स्वर्ग आदि अन्य लोक । शरीर या पंचतत्त्व से पृथक् आत्मा कोई वस्तु नहीं है । सांसारिक सुख के अतिरिक्त और कोई सुख नहीं है । इस दर्शन का उद्देश्य है कि 'यावज्जीवेत् सुखं जीवेत्' जब तक जोवे सुख से जोवे । इसके लिए जो कुछ भी करना पड़े वह सब कुछ करे । इस दर्शन के सिद्धान्तों के समर्थन के लिए कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ नहीं है । अन्य दार्शनिक ग्रन्थों से इस दर्शन के सिद्धान्तों का ज्ञान होता है । एक बृहस्पति इस दर्शन का प्रामाणिक प्राचार्य माना जाता है । विजयनगर के माधव (१३५० ई०) के सर्वदर्शनसंग्रह में कुछ ऐसे उद्धरण दिये गये हैं जो उसके माने जाते हैं । स्वभाववाद, नियतिवाद और यदृच्छावाद भौतिकवादी विचारों का सकारण विवेचन करते हैं।
बौद्ध-दर्शन कपिलवस्तु के राजकुमार गौतम (५३५-४८५ ई० पू०) ने बौद्ध-दर्शन की स्थापना की थी। वे मनुष्यों के दुःखों को देखकर बहुत द्रवित हुए थे। मनुष्यों के दुःखों को दूर करने का साधन प्राप्त करने के लिए उन्होंने समाधि लगाई और उन्हें ज्ञान-प्राप्ति ( बोध ) हुई । बोध होने के कारण उनका नाम उसी समय से बुद्ध प्रचलित हो गया। उन्होंने मानवीय दुःखों को दूर करने के लिए कुछ सिद्धान्त स्थापित किए। वह कल्पना-जगत् में नहीं गये हैं । बोघ-प्राप्ति से पूर्व वह अनीश्वरवादी सिद्धान्त के समर्थक थे।