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संस्कृत साहित्य का इतिहास जीवन के किस काल में किन कर्तव्यों को मुख्य रूप से करे । जीवन के चार उद्देश्य माने गये थे -धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । अर्थ और काम धर्म के आश्रित थे तथा ये तीनों जीवन के चरम-लक्ष्य मोक्ष के आश्रित थे । अर्थ और काम में आसक्ति मनुष्य की आत्मा को सांसारिक बन्धनों में बाँधती है, अतएव इन दोनों को स्वतन्त्रता नहीं देनी चाहिए। उनको इस प्रकार से नियन्त्रित किया जाना चाहिये कि वे आत्मा को उन्नति में सहायक सिद्ध हों । यदि ये तीनों चरम लक्ष्य मोक्ष के अवोन नहीं किए जाते हैं तो मृत्यु के पश्चात् जीव को पुनः जन्म और मृत्यु के बन्धन में आना पड़ता है । ऐसा होना स्वाभाविक है, अन्यथा विश्व में नैतिकता को व्यवस्था नहीं हो सकती है। भारतीय पुनर्जन्मवाद में विश्वास रखते हैं । पुनर्जन्म का सिद्धान्त इस नैतिक सिद्धान्त पर आश्रित है कि मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है' । इनी सिद्धान्त के अनुसार मोक्ष का भी सिद्धान्त स्वीकार किया गया है । इस सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य ज्ञान के द्वारा पुनर्जन्म के बन्धन से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है । जो मनुष्य को उचित कार्य करने से रोकता है, वह अज्ञान है । सत्य का ज्ञान मनुष्य को सन्मार्ग पर लाता है । इस सत्य का ज्ञान दार्शनिक विवेचन से ही प्राप्त होता है । धर्म के द्वारा निर्धारित नैतिक अनुशासन मनुष्य के अज्ञान को समाप्त करता है । इस प्रकार मोक्ष की प्राप्ति केवल श्रद्धा से नहीं, अपितु कर्म के द्वारा होती है । भारतीय पद्धति में केवल दार्शनिक विवेचन को अपेक्षा धर्म को विशेष महत्त्व दिया गया है ।
वैदिक ग्रन्थों में दार्शनिक भावों के बीज विद्यमान हैं। उनसे ही विभिन्न दर्शनों का उद्भव और विकास हुआ है। इन दर्शनों की मुख्य सत्यता यह है कि ये परमात्मा के अस्तित्व को मानते हैं । वेदों में ऐसे मन्त्र विद्यमान हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि परमात्मा के स्वरूप को जानने का प्रयत्न उस समय किया गया था। इन उल्लेखों से ज्ञात होता है कि बहुत प्राचीन समय से ही दार्शनिक अन्वेषण प्रारम्भ हो गया था, जो अन्वेषण एक देवता