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काव्य और नाट्यशास्त्र के सिद्धान्त
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इस प्रकार के ग्रन्थों में विद्याधर ( लगभग १३०० ई० ) का एकावलि प्रन्थ है । यह ग्रन्थ उसने अपने प्रश्रयदाता उत्कल और कलिंग के राजा नरसिंह की प्रशंसा में लिखा है । यह काव्यप्रकाश के अनुकरण पर लिखा गया है । विद्यानाथ के प्रतापरुद्रिययशोभूषण ग्रन्थ से इस प्रकार के काव्य की विचित्रता ज्ञात होती है। ग्रन्थ का नाम ही अश्रयदाता के नाम से है । वह विद्यानाथ और अगस्त्य एक ही व्यक्ति हैं । यह वारंगल के राजा प्रतापदेव ( लगभग १३०० ई० ) की प्रशंसा में लिखा गया है । विश्वेश्वर का चमत्कारचन्द्रिका ग्रन्थ शिंगभूपाल ( लगभग १४०० ई० ) की प्रशंसा में लिखा गया है । यज्ञनारायण ने अलंकाररत्नाकर ग्रन्थ तन्जौर के राजा रघुनाथ नायक ( १६१४-१६३२ ई० ) की प्रशंसा में लिखा है। नरसिंह कवि, जिसकी उपाधि अभिनवकालिदास थी, ने नंजराज ( १८ वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध ) को प्रशंसा में नजराजयशोभूषण ग्रन्थ लिखा है । सदाशिवमखिन् ने १८वीं शताब्दी के अन्त में ट्रावनकोर के राजा रामवर्मा की प्रशंसा में रामवर्मयशोभूषण ग्रन्थ लिखा है । ___नाट्यशास्त्र की परिभाषाओं के विषय में बहुमूल्य सूचना सागरनन्दी के नाटकलक्षणरत्नकोश नामक ग्रन्थ में मिलती है । इस ग्रन्थ में दिये गये बहुत से दृष्टान्त न केवल कवियों के काल-क्रम को व्यवस्थित करने में सहायता देते हैं। किन्तु अनेक ऐसी रचनात्रों की सूचना प्रदान करते हैं जो अब लुप्त हो गये हैं। १७वीं शताब्दी में कृष्णभट्ट ने प्रश्नमाला को रचना को । यह साहित्यिक समालोचना का एक विशिष्ट ग्रन्थ है। इसमें प्रामाणिक ग्रन्थों के पाठ्य के विषय में कुछ समस्याएँ उठायो गयो हैं और उनका उत्तर भी दिया गया है ।
इनमें से कुछ साहित्यशास्त्रियों ने काव्य-लेखन के लक्ष्य और उपयोगिता पर भी विचार किया है। काव्यलेखनका लक्ष्य यश और धन माना गया है । कुछ लेखकों ने काव्यलेखन का लक्ष्य चतुर्वर्गप्राप्ति माना है । काम्यलेखन के विभिन्न उद्देश्यों का संग्रह मम्मट ने अग्रलिखित श्लोक में किया है