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संस्कृत साहित्य का इतिहास
( 5 ) सिद्धिस्थान । इन दोनों में सामान्य चिकित्सा का वर्णन है । इसका अरबी में ८०० ई० के लगभग अनुवाद हुआ था और फारसी में इससे भी पूर्व इसका अनुवाद हो चुका था । इसमें गद्य और पद्य दोनों हैं ।
सुश्रुतसंहिता का लेखक सुश्रुत है । यह आयुर्वेद का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है इसमें शल्य-चिकित्सा पर विशेष बल दिया गया है । इसमें शल्यचिकित्सा के औजारों और प्रयोगों का वर्णन है । हवीं शताब्दी ई० में उसका नाम विदेशों में भी फैल गया था ।
काश्यपसंहिता में १३ अध्याय हैं । इसमें मन्त्रों के द्वारा विष के प्रभाव के निवारण का वर्णन किया गया है । भेल (भेद ) संहिता अपूर्ण और अशुद्ध रूप में प्राप्त होती है । नावनीतक ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रति १८९० ई० में प्राप्त हुई है । इसमें चूर्ण, तेल और पौष्टिक चीजों के विषय में बहुमूल्य बातें बताई गई हैं । यह ग्रन्थ सभी प्राचीन ग्रन्थों का सार माना जाता है । इसका समय चतुर्थ शताब्दी ई० समझना चाहिए । वृद्धजीवक द्वारा लिखित वृद्धजीवकीय ग्रन्थ कौमारभृत्य विषय पर है । यह अपूर्ण रूप में प्राप्य है ।
वाग्भट्ट ने षष्ठ शताब्दी ई० में अष्टांगहृदय और अष्टांगसंग्रह दो ग्रन्थ लिखे हैं वह सिंहगुप्त का पुत्र और दूसरे वाग्भट्ट का पौत्र था । यह कहा जाता है कि इत्सिंग ( ६७२-६७५ ई० ) ने वाग्भट्ट के ग्रन्थों का उल्लेख किया है । इन दोनों वाग्भट्टों को पाश्चात्य विद्वान् बौद्ध व्यक्ति मानते हैं, परन्तु इनके ग्रन्थों में प्रार्यजीवन की परम्परा का वर्णन होने से सिद्ध होता है कि ये दोनों वाग्भट्ट हिन्दू थे । आलोचकों का मत है कि वृद्ध वाग्भट्ट ने अष्टांगसंग्रह ग्रन्थ लिखा है और छोटे वाग्भट्ट ने अष्टांगहृदय ग्रन्थ लिखा है । इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि ये दोनों ग्रन्थ दो विभिन्न व्यक्तियों के लिखे हुए हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि अष्टांगसंग्रह प्राचीन ग्रन्थों से उपलब्ध सामग्री को एकत्र करके बनाया गया है । अष्टांगहृदय का दूसरा