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उपवेद
(५) कौमारभृत्य । शिशु-चिकित्सा का वर्णन । (६) अगद-तन्त्र । विषविद्या का वर्णन । (७) रसायनतन्त्र । पौष्टिक रसायनों का वर्णन । (८) वाजीकरणतन्त्र । वीर्यवर्धक औषधियों का वर्णन । आयुर्वेद का अध्ययन ८ विभागों में किया गया है । वे विभाग ये हैं-सूत्र, शारीत्र, इन्द्रिय, चिकित्सा, निदान, विमान, विकल्प और सिद्धि ।
अाजकल जो ग्रन्य प्राप्त हैं, उनसे ज्ञात होता है कि आत्रेय पुनर्वसु अायुर्वेद को निश्चित रूप देने वाला था । बौद्ध लेखों से ज्ञात होता है कि वैद्य पात्रेय, गौतम बुद्ध के जन्म से पूर्व तक्षशिला में रहता था । अतः उसका समय ६०० ई० पू० से पूर्व है । उसने यह आयुर्वेद अग्निवेश को पढ़ाया और उसने यह विद्या चरक को पढ़ाई। चरक और दृढ़बल ने जो कुछ पढ़ा था, उसको उन्होंने ग्रन्थरूप में परिणत किया । उस ग्रन्थ का हो नाम चरकसंहिता पड़ा। चरक आयुर्वेद का सबसे प्राचीन और प्रामाणिक आचार्य है । भारतीय परम्परा के अनुसार चरक और वैयाकरण पतंजलि (१५० ई० पू०) एक ही व्यक्ति हैं । बौद्ध पिटक ग्रन्थों में उल्लेख किया गया है कि राजा कनिष्क ( प्रथम शताब्दी ई० ) के राजद्वार में चरक नाम का वैद्य रहता था। चरक गान्धार का निवासी था । उसका समय शताब्दी ई० मानना चाहिए । वाग्भट (६ठीं शताब्दी ई० ) ने दृढ बल का उद्धरण दिया है। अतः उसका समय चतुर्थ शताब्दी ई० मानना चाहिए। उसने चरक के ग्रन्थ में कुछ और विषय जोड़े तथा उसको नवीन रूप में प्रस्तुत किया । चरकसंहिता ८ विभागों में है। इसमें ३० अध्याय हैं। इसके ८ विभागों के नाम हैं--(१) सूत्रस्थान । इसमें चिकित्सा, पथ्य और वैद्य के कर्तव्यों का वर्णन किया गया है । (२) निदानस्थान । इसमें मुख्य रोगों का वर्णन है । (३) विमानस्थान । इसमें निदान, आयुर्वेदीय विवेचन और आयुर्वेद के छात्र के कर्तव्यों का वर्णन है । (४) शरीरस्थान । इसमें शल्य-चिकित्सा और गर्भविज्ञान का वर्णन है। (५) इन्द्रियस्थान । इसमें रोगों के निदानों का वर्णन है। (६) चिकित्सास्थान । इसमें मख्य चिकित्साओं का वर्णन है । (७) कल्पस्थान ।