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उपवेद
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नाम अष्टांगहृदयसंहिता है । यह अष्टांगसंग्रह पर आश्रित है । आजकल अष्टांगहृदय का असाधारण प्रचार है ।
योगसार और योगशास्त्र ग्रन्थों का लेखक नागार्जुन माना जाता है । इसका पूर्ण परिचय अज्ञात है । कुछ आलोचक नागार्जुन नामक बौद्ध दार्शनिक की और इस वैद्य को एक हो व्यक्ति मानते हैं । बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन राजा कनिष्क के दरबार में था । माधवकार ने 5वीं शताब्दी ई० में निदान विषय पर रुग्विनिश्चय ग्रन्थ लिखा था । वृन्द ने सिद्धियोग नामक ग्रन्थ लिखा था । इसमें रोगों की औषधियाँ लिखी हुई हैं । सिद्धियोग का दूसरा नाम वृन्दमाधव है । वृन्द का समय अज्ञात है । चक्रपाणिदत्त ने १०६० ई० के लगभग चिकित्सा विषय पर चिकित्सासार ग्रन्थ लिखा है । इस पर वृन्द का प्रभाव पड़ा है । इसी शताब्दी में चिकित्सासार नामक दूसरा ग्रन्थ वंगसेन ने लिखा है । मिल्हण ने १२२४ ई० में चिकित्सा विषय पर ही चिकित्सामृत ग्रन्थ लिखा है । बोपदेव नामक व्याकरण की शाखा के स्थापक बोपदेव ने एक मौलिक एवं प्राचीन ग्रन्थ शार्ङ्गधरसंहिता की टीका १३ वीं शताब्दी में की है । शतश्लोकी ग्रन्थ का भी लेखक बोपदेव माना जाता है । इसमें चूर्णों और गोलियों का वर्णन है । १४वीं शताब्दी में तिसट द्वारा लिखित चिकित्साकलिका ग्रन्थ १६वीं शताब्दी में भावमिश्र द्वारा लिखित भावप्रकाश और १७वीं शताब्दी में लोलम्बराज द्वारा लिखित वैद्यजीवन ग्रन्थ भी विशेष महत्त्व के हैं ।
आयुर्वेद में धातु निर्मित औषधियों और उनमें भी पारे की बनी हुई औषधियों को विशेष महत्त्व दिया गया है । यह निकृष्ट धातुत्रों को रूपान्तरित करने के लिए उपयोग में आता था । इसका उपयोग पौष्टिक पदार्थों के निर्माण के लिए भी होता था । यह माना जाता है कि रस विषय पर नागार्जुन ने रसरत्नाकर ग्रन्थ लिखा है । रसरत्नसमुच्चय के लेखक वाग्भट्ट, अश्विनीकुमार और नित्यनाथ माने जाते हैं । उसका समय १३०० ई० माना जाता है । नित्यनाथ ने रसरत्नाकर ग्रन्थ भी लिखा है । पारे को जो