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सस्कृत साहित्य का इतिहास एकरूपता भी अज्ञात है । आजकल सबसे प्राचीन जो शब्दकोश प्राप्त होता है, वह है अमरसिहकृत अमरकोश । अमरसिंह एक बौद्ध लेखक था । वह राजा विक्रमादित्य के नवरलों में से एक माना जाता है। उसका समय ४०० ई० और ६०० ई० के बीच का माना जाता है । इस कोश का दूसरा नाम नालिंगानुशासन है। इसमें प्रथम तीन काण्डों में समानार्थक शब्दों का वर्णन है। अन्त में नानार्थक शब्दों, अव्ययों तथा लिंगों का वर्णन है। अमरसिंह के समकालीन एक लेखक शाश्वत ने अनेकार्थसमुच्चय ग्रन्थ लिखा है । हलायुध ने ६५० ई० के लगभग अभिधानरत्नमाला ग्रन्थ लिखा है। नाममालिका धारानरेश भोज ( १००५-१०५४ ई० ) की रचना है । यादवप्रकाश ने ११ वीं शताब्दी के मध्य में वैजयन्ती ग्रन्थ लिखा है। इसमें समानार्थक और नानार्थक दोनों शब्दों का संग्रह है। यादवप्रकाश पहले अद्वैतवादो था, परन्तु बाद में रामानुज के प्रभाव के कारण वह विशिष्टाद्वैतवादी हो गया था। अजयपाल ( १०७५-११४० ई० ) नानार्थरत्नमाला ग्रन्थ का लेखक माना जाता है। इसमें अनेकार्थक शब्दों का वर्णन है । १२ वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ये ग्रन्थ लिखे गये--(१) केशवस्वामी ने नानार्थार्णवसंक्षेप ग्रन्थ लिखा है। इसमें उसने नानार्थक शब्दों के अर्थ और उनके लिंग लिखे हैं । (२) महेश्वर ने विश्वप्रकाश ग्रन्थ लिखा है । इसमें उसने समानार्थक
और नानार्थक शब्दों का वर्णन किया है। इसी समय दूसरे महेश्वर ने शब्द-विन्यास का वर्णन करते हुए शब्दभेदप्रकाश नामक ग्रन्थ लिखा है । (३) हेमचन्द्र ने अभिधानचिन्तामणि ग्रन्थ लिखा है। इसमें उसने समानार्थक शब्दों का वर्णन किया है । साथ ही जैन देवताओं का भी वर्णन किया है। उसने इस ग्रन्थ का एक परिशिष्ट निघण्टुशेष लिखा है। इसमें उसने औषधियों और वनस्पतियों का वर्णन किया है। उसने एक दूसरा परिशिष्ट अनेकार्थसंग्रह लिखा है। इसमें उसने अनेकार्थ शब्दों का वर्णन किया है। इसमें एक अक्षर वाले शब्दों से लेकर ६ अक्षर वाले अनेकार्थक शब्दों के अर्थ दिए गए हैं । श्रीकण्ठचरित के लेखक मंख ने अनेकार्थकोश ग्रन्थ लिखा है। राघवपाण्डवीय का लेखक जैन कवि धनंजय नाममाला और निघण्टसमय