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संस्कृत साहित्य का इतिहास
१२वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में अपरार्क द्वारा लिखित अपरार्कयाज्ञवल्कोयधर्मशास्त्रनिबन्ध नाम की टीका। इनमें से मिताक्षरा टीका व्यवहार के विषय में एक स्वतन्त्र प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है। इस पर बालभट्ट ने टीका की है। उसका दूसरा नाम बालकृष्ण था। वह नागेशभट्ट के शिष्य वैयाकरण वैद्यनाथ पायगुण्ड (१७५० ई०) का पुत्र था । कुछ विद्वान् यह भी मानते हैं कि इस टोका का लेखक वैद्यनाथ स्वयं है। इस ठोका का नाम लक्ष्मीव्याख्यान या बालभट्टि है । यह माना जाता है कि इस टोका के लेखक, वैद्य नाथ या उसके पुत्र ने, यह टीका वैद्यनाथ को पत्नो लक्ष्मीदेवी के नाम से लिया है। इसमें पैतृक सम्पति पर स्त्रियों के अधिकार पर बहुत बल दिया गया है ।
_नारदस्मृति (१००-३०० ई०) । वृहत् और लघु दो संस्करणों के रूप में प्राप्त होती है। बाण को इस स्मृति के अस्तित्व का ज्ञान था। यह माना जाता है कि पराशरस्मृति का वृहत् संस्करण नष्ट हो गया है। पराशरस्मति का लघु संस्करण प्राप्य है । इस पर विजयनगर के माधव (१२६७-१३८: ई०) ने टीका लिखी है। इसके मूलग्रन्थ का समय १०० ई० और ५०० ३० के बीच में माना जाता है । बृहस्पतिस्मृति (२००-४०० ई०) अपूर्ण रूप में प्राप्त होती हैं। यह मनुस्मृति को आलोचनामात्र ज्ञात होती है । इनके अतिरिक्त बहुत सी स्मृतियाँ हैं । इनकी संख्या १५२ मानी जाती है । ___ स्मृति-ग्रन्थों पर लिखे गए छोटे ग्रन्थ बहुत महत्त्व के हैं । वे अनेक हैं। वे प्रामाणिक ग्रन्थ के तुल्य माने जाते हैं। जीमूतवाहन ने १२वीं शताब्दी ई० में धर्मरत्न नामक एक ग्रन्थ लिखा है इसमें विधान-सम्बन्धी बातों का विवेचन किया गया है। इसके तोन भाग हैं-कालविवेक, व्यवहारमातृका
और दायभाग । इसी समय लक्ष्मीधर ने स्मृतिकल्पतरु ग्रन्थ लिखा है। बङ्गाल के राजा लक्ष्मणसेन के लिए १२०० ई० के लगभग हलायध ने १. A History of Dharmasastaa by P. V. Kane.
पृष्ठ (भूमिका) २६ । " " पृष्ठ (भूमिका) ३० ।