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धर्मशास्त्र
काश्यप और बृहस्पति के धर्मसूत्र । इस धर्मशास्त्रश्रेणी का समय ६०० ई० पू० से ४०० ई० तक है।
मनुस्मृति ही सबसे प्राचीन स्मृति-ग्रन्थ है। इसमें अनेक विषयों का वर्णन है । इसमें सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर वेदान्त के सदृश दार्शनिक विषयों का वर्णन है। इसका दूसरा नाम मानवधर्मशास्त्र है । जो ग्रन्थ आजकल प्राप्त है, उसमें १२ अध्याय हैं। इसमें यह कहा गया है कि यह भग ने कहा है। इससे यह ज्ञात होता है कि भृगु ने मनु के वक्तव्यों को प्रकाशित और प्रचारित किया है । इसमें बहुत से स्थलों पर मनु की सम्मति का उल्लेख है । सम्भवतः वह मनु कोई अन्य है। यास्क के निरुक्त में और महाभारत में मनु का उल्लेख है । मनु ही धर्मशास्त्र पर सबसे प्राचीन और प्रामाणिक लेखक है । किन्तु इतने से उसके समय-निर्धारण में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती है । यह ग्रन्थ बर्मा, श्याम और जावा में भी पहुँचा है और वहाँ के विधानों को सने बहुत अधिक प्रभावित किया है । इसके ही अनुकरण पर वहाँ के विधान बने हैं। इसकी टोकामों में अधिक प्रसिद्ध टीकाएँ मेधातिथि (८२५६०० ई०) और कुल्लूक भट्ट (लगभग १२०० ई०) की हैं ।
मनस्मति के बाद महत्त्व की दृष्टि से दूसरा स्थान याज्ञवल्क्यस्मति का है । इसका समय १०० ई० पू० से लेकर ३०० ई० के मध्य में माना जाता हैं । इसमें तीन अध्याय हैं । इनमें क्रमश: एक एक अध्याय में प्राचार, व्यवहार और प्रायश्चित्त का वर्णन है । मनुस्मृति के तुल्य इसमें भी वेदान्त के सिद्धान्तों का वर्णन है । इसकी कई टीकाओं में से तीन टीकाएँ प्रमुख हैं, जिनसे इसकी प्रसिद्धि और प्रामाणिकता का ज्ञान होता है । इन टीकानों की भी बहुत प्रसिद्धि हुई है। वे टीकाएँ ये हैं-(१) विश्वरूप (८००-८२५ ई०) १ कृत बालक्रीडा टीका। (२) चालुक्य राजा विक्रमादित्य षष्ठ के निरीक्षण में ११२० ई० में विज्ञानेश्वर के द्वारा लिखी गई मिताक्षरा टीका । (३) १. A History of Dharmasastra by P. V. Kane. भाग १
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