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काव्य और नाट्यशास्त्र के सिद्धान्त
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एक रेड्डी राजकुमार शिंगभूपाल १४०० ई० के लगभग हुआ था। वह स्वयं विद्वान् था और विद्वानों का आश्रयदाता था। उसने रसार्गवसुधाकर अन्य लिखा है। इसमें तीन अध्याय हैं । इसमें उसने रसों और नाट्यशास्त्र का वर्णन किया है । कुछ विद्वानों का मत है कि यह ग्रन्थ शिंगभूपाल के
आश्रित विश्वेश्वर नामक विद्वान् को रचना है । भानुदत्त १४०० ई० के लगभग हुप्रा था । उसने रसमंजरी और रसतरंगिणी नामक दो ग्रन्थ लिखे हैं। दोनों में रस का विवेचन है, विशेषरूप से श्रृंगार का । विश्वनाथ १४वीं शताब्दी के पूर्वार्द्व में हुआ था। वह उड़ीसा का निवासी था । उसने दस अध्यायों में साहित्यदर्पण ग्रन्थ लिखा है। इसमें उसने काव्यशास्त्रीय तथा नाटयशास्त्रीय सभो विषयों का विवेचन किया है। उसने अन्य कवियों के ग्रन्थों से उद्धरण देने के अतिरिक्त अपने ग्रन्थों से भी उद्धरण दिए हैं। उनके नाम हैं - रघुविलासमहाकाव्य, एक प्राकृत में लिखित कुवलयाश्वचरित, एक नाटिका प्रभावती, चन्द्र कलानाटिका और एक ऐतिहासिक काव्य नरसिंहराजविजय । ये सभी ग्रन्थ नष्ट हो गये हैं। एक रेड्डी राजकुमार वेम भूपाल (लगभग १४२० ई०) ने १३ अध्यायों में साहित्यचिन्तामणि ग्रन्थ लिखा है । इसमें उसने शब्दालङ्कारों और अर्थालङ्कारों का वर्णन किया है। वह कोण्ड बीडू वंश का राजा था । वामनभट्ट बाण उसका आश्रित कवि था। विद्याभूषग की साहित्यकौमुदी उसी समय की रचना है। रूपगोस्वामी ने १५३३ ई० में उज्ज्वलनीलमणि नामक ग्रन्थ लिखा है। इसमें कृष्ण के प्रशंसात्मक श्लोक उदाहरण के रूप में दिये गये हैं। जोडगोस्वामी ने इसको टीका लिखी है। अप्यय दीक्षित १५५४ ई० में हमा था । उसने कुतवानन्द, चिनीमांशा और वृत्तिवातिक लिखे हैं । उसने जयदेव के चन्द्रालोक के पाँचवें अध्याय पर कुवलयानन्द में टीका की है और चन्द्रालोक में आवश्यक परिवर्तन भी किये हैं । कुवलयानन्द चन्द्रालोक के पाँचवें अध्याय पर आश्रित है, अतः इसमें अर्थालङ्कारों का ही वर्णन है। यह ग्रन्थ दक्षिण भारत में बहुत प्रचलित है । चित्रमीमांसा में अलङ्कारों