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संस्कृत साहित्य का इतिहास
मदन नाम के एक कवि ने एक नाटिका पारिजातमंजरी लिखी है । इसका दूसरा नाम विजयश्री है। इसमें चार अङ्क हैं । उसकी उपाधि बाल सरस्वती थी । वह अपने एक शिष्य परमार वंश के राजा अर्जुनवर्मा का प्रश्रित कवि था । इसमें वर्णन किया गया है कि अर्जुनवर्मा की छाती पर एक माला गिरो और वह एक स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गई और उसका विवाह अर्जुनवर्मा से हो गया । इस नाटक के दो अङ्क धारा में शिला पर खुदे हुए हैं। एक श्वेताम्बर जैन जयसिंह सूरि ने १२३० ई० में हम्मीरमदमर्दन नामक नाटक लिखा है । इसमें पाँच अङ्क हैं । इसमें धोलक के राजा वीरधवल के द्वारा गुजरात पर आक्रमण करने वाले मुसलमानों को परास्त करने का वर्णन
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प्रह्लादन परमारवंशी धराधवल का भाई था । वह १३०० ई० के लगभग अपने भाई के नीचे युवराज था । उसने पार्थपराक्रम नामक व्यायोग लिखा है । इसमें विराट राजा के यहाँ से गायों को चुराने वाले कौरवों को अर्जुन के द्वारा हराने का वर्णन है । मोक्षादित्य ने एक व्यायोगं भीम-विक्रम लिखा है । उसमें भीम के पराक्रमों का वर्णन है । इसकी सबसे प्राचीन हस्तलिखित प्रति का समय १३२८ ई० है । अतः इसका लेखक इससे पूर्ववर्ती होना चाहिए । एक जैन मुनि तथा जयप्रभसूरि के शिष्य रामभद्रमुनि ने १३०० ई० के लगभग ६ अङ्कों में प्रबुद्धरौहिणेय नामक नाटक लिखा है इसमें डाकू रौहिणेय के पराक्रमों का वर्णन है । केरल के एक राजकुमार रविवर्मा ने १३०० ई० के लगभग पाँच अङ्कों में प्रद्युम्नाभ्युदय नाटक लिखा है । इसमें पाँच अङ्क हैं । इसमें वज्रपुर के राजा वज्रनाभ के नाश का वर्णन है और राजकुमार प्रद्युम्न का राजकुमारी प्रभावती के साथ विवाह का वर्णन है । विद्यानाथ ( १३०० ई० ) ने प्रतापरुद्रियकल्याण नाटक पाँच श्रङ्कों में लिखा है । इसमें वरंगल के राजा प्रतापरुद्र ( १२९४ - १३२५ ई० ) का राजगद्दी पर बैठने का वर्णन है । वह नाटक लेखक के साहित्य - शास्त्र के एक ग्रन्थ प्रतापरुद्रिययशोभूषण में ही सम्मिलित है । नाटककार ने यह