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इतिहास
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होते हुए भी उसने कश्मीर के राजनीतिक कुचक्रों का विस्तृत वर्णन किया है। उसने निरर्थक बातों का त्याग किया है। उसने कतिपय राजाओं को दोषी बताया है कि उन्होंने अपन शत्रुओं के षड्यन्त्रों के विरुद्ध सावधानी से काम नहीं लिया। उसके समय में सैनिक और भृत्य राजभक्त नहीं रहे थे । वे अपने राजाओं को धोखा देते थे और शत्रुपक्ष से मिल जाते थे । कल्हण ने यह अन्तर दिखाया है कि किस प्रकार राजपूत और विदेशी अपने राजाओं को धोखा नहीं देते हैं, किन्तु कश्मीरी धोखा देते हैं। राज्य के कर्मचारी भी लोभी, जनपीडक और अराजभक्त थे । उसने दिखाया है कि राज्य की स्थिति यह थी कि मन्त्रियों में विरोध था, सैनिक लोभी थे, पुरोहित षड्यन्त्र करते थे, सेनाओं के अध्यक्ष राजा के नियन्त्रण में नहीं थे, और प्रजा भी विलासप्रिय हो गई थी। उस समय कश्मीर में छल-प्रपंच, षड्यन्त्र, वध करना, आत्महत्या पारिवारिक विवाद ये मुख्य उल्लेखनीय जीवन की घटनाएँ थीं । कल्हण ने कश्मीर की घटनाओं का एक निष्पक्ष अध्ययन किया है । उसने जो कुछ लिखा है, वह ऐतिहासिक सामग्री से भी संतुष्ट होता है।
श्लाध्यः स एव गुणवान् रागद्वेषबहिष्कृतः भूतार्थकथने यस्य स्थेयस्येव सरस्वती ।।
-राजतरङ्गिणी १-७ उसने इस बात पर बल दिया है कि यह संसार अस्थिर है । ऐतिहासिक ग्रन्थ के रूप में राजतरंगिणी का स्थान बहुत ऊँचा है । तथापि कश्मीर का प्रारम्भिक इतिहास अन्धकार में ही है । उसने अपने ग्रन्थ को जो अपूर्ण छोड़ा था, उसको जोनराज, श्रीवर, प्राज्यभट्ट और शुक ने चाल रक्खा । सन्ध्याकरनन्दी के रामपालचरित में बंगाल के रामपाल ( ११०४-११५० ई०) का इतिहास वणित है । पृथ्वीराजविजय,जयन्तलिवजय, सुकृतसंकीर्तन, हम्मीरमदमर्दन, वसन्तविलास सुरथोत्सव, कोतिकौमुदी, मोहपराजय, चन्द्रप्रभचरित, जगदूचरित, इत्यादि में ऐतिहासिक महत्त्व को सामग्री प्राप्त होती है । गंगादेवी के मथुराविजय, राजनाथ द्वितीय के सालुवाभ्युदय, और राजनाथ तृतीय के अच्युतरा