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इतिहास
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इतिहास - सम्बन्धी ग्रन्थों के विषय में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि उनमें एक प्रकार के वर्ष नहीं दिए हुए हैं । भारतवर्ष में कई प्रकार के वर्ष चालू थे, जो कि किसी वंश के द्वारा वंश - नाम से चलाये गये थे । प्रायः तिथियाँ उस अर्थ के बोधक शब्दों के द्वारा बतायी गयी हैं ।
इतिहास का व्यापक अर्थ लेने पर संस्कृत साहित्य में इतिहास कई रूपों में प्राप्त होता है । रामायण, महाभारत और पुराणों में ऐतिहासिक महत्त्व की सामग्री विद्यमान है । अश्वघोष, हेमचन्द्र आदि ने बुद्ध और जैन सन्तों के विषय में महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री प्रस्तुत की हैं । ये ग्रन्थ, पुराण तथा रुद्रदामन् आदि के शिलालेख ऐतिहासिक सामग्री प्रस्तुत करते हैं ।
सब से प्राचीन ग्रन्थ, जिसको ऐतिहासिक ग्रन्थ कह सकते हैं, कौमुदी - महोत्सव है । यह गुप्त काल के राजनीतिक कुचक्रों पर प्रकाश डालता है । कांची के महेन्द्रविक्रमन् के मत्तविलासप्रहसन से ज्ञात होता है कि विभिन्न धर्मों के अनुयायियों में किस प्रकार की नाना त्रुटियाँ आ गयी थीं और उनका पतन प्रारम्भ हो गया था । बाण के हर्षचरित में बाण की आत्मकथा विद्यमान है और हर्ष का जीवन-चरित वर्णित है । यह ऐतिहासिक ग्रन्थ की अपेक्षा ऐतिहासिक काव्य अधिक है । इसमें उसने जो ऐतिहासिक तथ्य वर्णन किये हैं, उनको पूर्णतया स्पष्ट नहीं किया है | राज्यश्री के पति ग्रहवर्मा का वध क्यों हुआ ? गौड़ राजा ने वस्तुतः क्या छल किया था ? हर्ष के श्रित और कौन से कवि थे ? बाण ने इन विषयों पर कोई सूचना नहीं दी है । उसके प्रारम्भिक श्लोकों से अवश्य यह ज्ञात होता है कि उससे पूर्व कौनकौन विशेष कवि हुए थे । उसने अन्य ऐतिहासिक तथ्यों को भी काव्यात्मक अलंकृत भाषा में प्रस्तुत किया है । तथापि हर्षचरित इस दृष्टि से बहुत महत्त्व - पूर्ण ग्रन्थ हैं कि इसके द्वारा ७वीं शताब्दी के भारतीयों के रीति-रिवाज का अच्छा ज्ञान होता है । " बाण ने इतिहास को यह सामग्री प्रदान की है... सेना का विशद चित्रण, राजद्वार का विस्तृत परिचय, विविध सम्प्रदायों के अनुयायियों और उनका बौद्धों के साथ व्यवहार का वर्णन, ब्राह्मणों के विविध कार्य
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