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संस्कृत साहित्य का इतिहास
और अपने मित्रों का परिचय ।" वाक्पति का गौड़रहो भी एतिहासिक ग्रन्थ है । इसमें यशोवर्मन् की पराजय का वर्ष नहीं दिया है। कनकसेनवादिराजका यशोधरचरित ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से महत्त्व का है । कल्हण के ग्रन्थ से ज्ञात होता है कि शंकुक ने एक काव्य भुवनाभ्युदय लिखा है और इसमें उसने ८५० ई० में हुए मम्म और उत्पल के युद्ध का वर्णन किया है | यह ग्रन्थ नष्ट हो गया है । पद्मगुप्त के नवसाहसांकचरित में कुछ ऐतिहासिक महत्त्व के तथ्यों का उल्लेख है । बिल्हण का विक्रमांकदेवचरित ऐतिहासिक महत्त्व का ग्रन्थ है । उसका प्राश्रयदाता विक्रमांक या विक्रमादित्य शिव के आदेशानुसार राजा हुआ । उसका राज्य पर अधिकार सिद्ध करने के लिए शिव तीन बार प्रकट हुए उसको अपने बड़े भाई सोमेश्वर और छोटे भाई जयसिंह से निरन्तर युद्ध करना पड़ा । उसने चोलों के विरुद्ध विजय यात्रा की थी । इसका अन्तिम सर्ग आत्मकथा के रूप में महत्त्वपूर्ण है । इसमें उसने घटनाओं के साथ वर्ष नहीं दिए हैं। बिल्हण की लिखी एक नाटिका कर्णसुन्दरी है । यद्यपि वह ऐतिहासिक दृष्टिकोण से नहीं लिखी गई है तथापि उसमें ऐतिहासिक सामग्री है । उसमें अनहिलवाद के राजा कर्णदेव त्रैलोक्यमल्ल का बड़ी आयु में कर्णाटक की राजकुमारी मियानल्लदेवी से विवाह का उल्लेख है । हेमचन्द्र का वव्याश्रयकाव्य भी इसी प्रकार का है यशश्चन्द्र का मुद्रितकुमुदचन्द्र धार्मिक दृष्टिकोण से ऐतिहासिक है । श्रीकण्ठचरित के अन्तिम सर्ग में कश्मीर के राजा जयसिंह के मन्त्री अलंकार के दरबार में रहने वाले कवियों का वर्णन है । जल्हण के सोमपालविलास में उसके आश्रयदाता राजपुरी के राजा सोमपाल का इतिहास वर्णित है ।
कल्हण को भारतवर्ष का सर्वश्रेष्ठ ऐतिहासिक विद्वान् कह सकते हैं । उसने लिखा है कि राजतरंगिणी को लिखने से पूर्व उसने ११ ऐतिहासिक ग्रन्थों और नीलमतपुराण को देखकर ग्रन्थ लिखा है । उसने राजा गोनन्द से लेकर राजा जयसिंह के गद्दी पर बैठने तक का कश्मीर के राजात्रों का वर्णन किया है । उसने अपना ग्रन्थ अपूर्ण ही छोड़ दिया है । कश्मीरी