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संस्कृत साहित्य का इतिहास
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स्वीकार करने का वर्णन है । वेदान्तदेशिक ने १४वीं शताब्दी ई० के पूर्वार्द्ध एक रूपकात्मक नाटक संकल्पसूर्योदय लिखा है । इसमें संकल्परूपी सूर्य के उदय का वर्णन है । इसमें दस अङ्क हैं । इसमें वेदान्त के विशिष्टाद्वैत मत का समर्थन किया गया है । इसमें लेखक ने यह मत प्रस्तुत किया है कि शान्त को भी एक मुख्य रस मानना चाहिए' । इसमें छली और अहंकारी व्यक्तियों का जीवन तथा उनकी कमियों का बहुत विस्तार के साथ वर्णन किया गया है । तुम्बुरु और नारद आदि मुनि रंगमंच पर आते हैं । विष्णुभक्ति के द्वारा सुखद अन्त होता है । गोकुलनाथ ने १६वीं शताब्दी में अमृतोदय नाटक लिखा है । इसमें सांसारिक विपत्तियों और कष्टों का वर्णन है तथा उनके निवारण का उपाय बताया गया है । इसके पात्र आन्वीक्षिकी, मीमांसा और श्रुति श्रादि हैं । रत्नखेट श्रीनिवास दीक्षित ( १५७० ई०) ने भावनापुरुषोत्तम नाटक लिखा है । लगभग इसी समय कविकर्णपूर ने चैतन्य सम्प्रदाय की धार्मिक परम्परात्रों के आधार पर चैतन्यचन्द्रोदय नाटक लिखा है । वेदकवि ( १६८४- १७२८ ई० ) ने सात कों में एक नाटक विद्यापरिणय लिखा है । इसमें विद्या का जीवात्मा से विवाह का वर्णन किया गया है । वेदकवि ने ही सात प्रङ्कों में जीवानन्दनम् नाटक लिखा है । इसमें आयुर्वेद और वेदान्तदर्शन का महत्त्व वर्णन किया गया है । कुछ विद्वानों के अनुसार वेदकवि के ये दोनों नाटक तन्जौर के मराठा राजा शाहजी (१६८४-१७१० ई० ) के मन्त्री आनन्दरायमखिन की रचना हैं | भूदेव शुक्ल का धर्मविजयनाटक १७३७ ई० में लिखा गया है। इसमें उस समय की धार्मिक विधियों का विस्तृत वर्णन है ।
छाया नाटक
छायानाटक आधुनिक देन है । प्राचीन नाट्यशास्त्रों में इसका उल्लेख नहीं है । छाया नाटक में गत्ते के बने हुए चित्र पर्दे पर टांग दिये जाते हैं और धागे की सहायता से उनको चलाया जाता है । उनके बीच का संवाद
१. संकल्पसूर्योदय १.१६ ।