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अध्याय १५ नीति-विषयक और उपदेशात्मक काव्य
नीति-विषयक सूक्तियाँ अनुभव के आधार पर सिद्ध तथ्यों पर निर्भर होती हैं । साधारणतया वे आचार से सम्बद्ध विषयों का वर्णन करती हैं । उपदेशात्मक काव्यों का लक्ष्य उपदेश देना होता है । नीति-विषयक और उपदेशात्मक काव्यों में भेद पूर्णरूप से निर्धारित नहीं किया जा सकता है । उपदेशात्मक काव्य में नीति-विषयक सूक्तियाँ प्राप्त हो सकती हैं और नीतिविषयक काव्य में उपदेशात्मक सूक्तियाँ हो सकती हैं !
इस प्रकार का काव्य बहुत प्राचीन समय से विद्यमान है । इस प्रकार के काव्य के विकास में धर्म और दर्शनों का प्रभाव बहुत स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। बार-बार जन्म और मरण से जीवात्मा की मुक्ति के लिए सत्य के अन्वेषण की इच्छा प्रारम्भ हुई । सुख - दुःख का अध्ययन किया गया तथा उनका जीवन में स्थान निश्चित किया गया । उन्नति के मार्ग पर चलते हुए. सद्गुणों और दुर्गुणों का मूल्य निर्धारित किया गया । जीवन की भलाई और बुराई तथा भले और बुरे व्यक्तियों पर विचार किया गया, जो मानव-जीवन को बहुत कुछ अंश में प्रभावित करते हैं । अतः इसके परिणाम - स्वरूप उदाहरणों के साथ सदाचार और दुराचार के नियम दिए गए । अतः ये काव्य सहनशीलता और भ्रातृभाव के विचारों का महत्व बताते हैं । मनुष्यों को पशुओं और पक्षियों के साथ भी प्रेम भाव का उपदेश देते हैं । देखिए :निर्गुणेष्वपि सन्वेषु दयां कुर्वन्ति साधवः ।
न हि संहरते ज्योत्स्नां चन्द्रश्चण्डालवेश्मनः ॥
अनासक्ति और संन्यास की प्रशंसा की गई है । इन सिद्धान्तों के समर्थन के लिए मानव और पशु-जगत से निःसंकोच उदाहरण लिए गए हैं। इस प्रकार
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