________________
अध्याय १६ कथा - साहित्य
प्राचीन काल से भारत में कहानियाँ बहुत प्रचलित हैं । ये कहानियाँ पराक्रमों, समुद्री यात्राओं तथा अन्य घटनाओं पर आधारित हैं । कुछ: कहानियाँ लेखक की कल्पना पर ही आधारित हैं । वे अधिकतर अभौतिक घटनाओं से सम्बद्ध हैं, जैसे-- आकाश में और पर्वतीय प्रदेशों में प्राणियों का संचार । कुछ गन्धर्वों आदि की कथा से सम्बद्ध हैं | कथा - साहित्य के अभ्युदय के समय धार्मिक भावना ने इस पर पर्याप्त प्रभाव डाला है । बौद्धों और जैनों ने अपने सिद्धान्तों के प्रचारार्थ कथा साहित्य का आश्रय लिया ।
यह ज्ञात नहीं है कि कथा - साहित्य के प्रारम्भ के समय कौन-सी भाषा और कौन से रूप का आश्रय लिया गया था । कथाएँ प्रारम्भ से जनप्रिय रही हैं, अत: यह माना जा सकता है कि प्रारम्भ में कथाएँ प्राकृत में लिखी गई थीं । प्राचीन कथा-ग्रन्थों के अभाव में इस विषय पर कोई निश्चित मत प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है ।
सबसे प्राचीन कथा - ग्रन्थ गुणाढ्य की बृहत्कथा है । यह ग्रन्थ अब अप्राप्य है । गुणाढ्य और उसके ग्रन्थ के विषय में इन पुस्तकों से कुछ परिचय प्राप्त होता है -- बुधस्वामी का बृहत्कथाश्लोकसंग्रह, क्षेमेन्द्र की बृहत्कथामंजरी और सोमदेव का कथासरित्सागर । इन तीनों ग्रन्थों के लेखकों का कथन है कि ये ग्रन्थ बृहत्कथा के संक्षिप्त रूप हैं । शिव पार्वती को एक कथा सुना रहे थे । वह कथा उनके एक सेवक पुष्पदन्त ने सुन ली । पार्वती ने उसको शाप दिया । उसका भाई माल्यवान् बीच में अपने भाई की ओर से कुछ कहने लगा, इस पर पार्वती ने उसे भी शाप दिया । पुष्पदन्त को यह शाप दिया कि वह मनुष्य के रूप में उत्पन्न होगा और एक दानव काणभूति