________________
कालिदास के परवर्ती नाटककार
२४७
कौमुदीमहोत्सव नाटक में पाँच अंक हैं । इसमें वर्णन किया गया है कि किस प्रकार ३४० ई० के लगभग कल्याणवर्मा ने अपना मगध का नष्ट हुआ राज्य पुनः प्राप्त किया । जब कल्याणवर्मा राजा बना था, तब इस नाटक का अभिनय हुआ था । इसका कथानक राजनीतिक है, परन्तु साथ ही प्रेम-कथा भी वर्णित है । इसका लेखक अज्ञात है । इसके लेखक के नाम वाला श्रंश लुप्त हो गया है । उसका अंतिम भाग है “कया” । इससे ज्ञात होता है कि इसकी लेखिका कोई स्त्री है, • जिसका नाम अज्ञात है । इस नाटक पर भास और कालिदास का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है । इस नाटक का समय चतुर्थ शताब्दी ई० मानना चाहिए ।
पल्लव - राजा सिंहविष्णु के पुत्र महेन्द्रविक्रमन् प्रथम ने एक प्रहसन नाटक मत्तविलासप्रहसन लिखा है । इसका समय ६१० ई० के लगभग है । इसमें काँची के नागरिक जीवन का वर्णन है । इसमें चोर - विद्या पर एक ग्रन्थ-लेखक कर्पट बताया गया है । इसमें लेखक ने दिखाया है कि किस प्रकार बौद्ध धर्म के अनुयायी तथा कापालिक और पाशुपत धर्म के अनुयायी मदिरापानादि दुर्गुणों में फँसे हुए थे ।
श्यामलक ने एक भाण-ग्रन्थ पादताडितक लिखा है । उसने एक कवि पारशव का नाम लिखा है । बाण ने पारशव का नाम लिखा है । इस नाटक में बौद्धों, लंकावासियों, आन्ध्रों और कोंकण आदि का उल्लेख है । इसमें एक कवि श्रार्य का उल्लेख है, जो दक्षिण से प्राया था । इसमें वक्त्र और अपवक्त्र छन्दों का उल्लेख है । इसकी शैली बाण की कादम्बरी की शैली से मिलती है । बाण ने अपने एक मित्र का नाम सोमिल लिखा है । इस नाटक का लेखक श्यामल और सोमिल संभवतः एक ही व्यक्ति है । इस प्रकार इसका समय सातवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध होता है । इसमें कामशास्त्र पर दत्तक को प्राचार्य मानने और वात्स्यायन ( २५० ई० ) के कामसूत्र का उल्लेख न करने से लेखक का यह समय ठीक प्रतीत नहीं होता है । विष्णुनाग नाम के एक ब्राह्मण के शिर पर एक वेश्या ने पैर मारा । वह इस विषय के