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कालिदास के परवर्ती नाटककार को पुत्री मालती से हुआ और माधव के मित्र मकरन्द का विवाह मालती की एक सखी मदयन्तिका से हा । माधव पद्मावती में पढ़ने के लिए आया । माधव और मालती दोनों के पिता की एक सहपाठिनी कामन्दकी नाम की स्त्री संन्यासिनी हो गई थी। वह अपने सहपाठियों के इन बच्चों का सदा कुशल चाहती थी । माधव ने एक दिन मालती को देखा और वह उससे प्रेम करने लगा । मालती भी माधव से प्रेम करने लगी। परन्तु उसके पिता पर राजा की ओर से यह दबाव डाला गया कि वह राजा के कृपा-पात्र और मदयन्तिका के भाई नन्दन से उसका विवाह कर दे । इस प्रकार विवाह का आयोजन हुआ। मकरन्द ने स्त्री का वेष बनाया और उसका विवाह नन्दन से हो गया । उन दोनों विवाहितों में विवाद प्रारम्भ हुआ और स्त्री मकरन्द ने नन्दन से अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लिया । नन्दन की बहिन मदयन्तिका को एक दिन मकरन्द ने एक बाघ से बचाया और वह तब से उससे प्रेम करने लगा । मालती, जिसका विवाह नन्दन से होना था, कामन्दकी के निर्देशानुसार एक मठ में लाई गई। वहाँ एक पाशुपत सम्प्रदाय को स्त्रो कापालिका उसे शिव के आगे बलि देने के लिए ले गई। माधव अकस्मात् वहाँ पहुंचा और उसने उस पाशुपत स्त्री से मालती की रक्षा की। प्रतिकार का भावना से पुनः पाशुपत सम्प्रदाय के व्यक्तियों ने मालती को पकड़ा, परन्तु कामन्दकी के एक साथी ने उसे बचाया । तत्पश्चात् मालती और माधव का विवाह सुखपूर्वक हो जाता है । इसकी कथा का संगठन अच्छा नहीं है । इसके नवम अङ्क में मालती के अदृश्य होने पर माधव के दुःख का जो वर्णन हुआ है, वह करुण रस की दृष्टि से कालिदास के विक्रमोर्वशीय के चतुर्थ अङ्ग के वर्णन से अच्छा है, परन्तु परिष्कार और सौन्दर्य को दृष्टि से उससे घटिया है । इस अङ्क में माधव ने अपनी अदृश्य प्रिया के नाम मेघ के द्वारा सन्देश भेजा है। इस सन्देश के दो श्लोकों पर कालिदास के मेघदूत का प्रभाव पड़ा है । इस नाटक में कई बिखरे हुए सुन्दर दृश्य हैं ।