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संस्कृत साहित्य का इतिहास
उत्तररामचरित में सात अङ्क हैं। इसमें रामायण के उत्तरकाण्ड की कथा वणित है। इसमें वर्णन किया गया है कि लक्ष्मण के पुत्र चन्द्रकेतु की सुरक्षा में जाते हुए अश्वमेध के घोड़े को लव और कुश ने रोका। इस प्रकार राम अपने दोनों पुत्रों से मिल सके । अन्तिम अङ्क में रामायण की कथा का एक छोटा सा दृश्य उपस्थित करके राम और सीता का शुभ मिलन दिखाया गया है । नाटक के दृष्टिकोण से उत्तररामचरित बहुत उच्चकोटि का सिद्ध नहीं होता है । यह नाटक की अपेक्षा एक नाटकीय काव्य अधिक है । इसमें वनों का वर्णन तथा राम और सीता के वियोग का वर्णन अत्यन्त प्रशंसनीय और संस्कृत साहित्य में अतुलनीय है । राम का सीता के आश्रम में अपने पुत्रों और सीता से मिलना, इस वर्णन पर कालिदास के अभिज्ञानशाकुन्तल, दिङ् नाग के कुन्दमाला और वेणीसंहार का प्रभाव दिखाई पड़ता है।
भवभति के ये तीनों नाटक उज्जैन में कालप्रियानाथ के महोत्सव पर अभिनीत किए गए थे। मालतीमाधव का दृश्य पद्मावती में रखा गया है । मालतीमाधव की कथा कवि की अपनी कल्पना है, परन्तु अन्य दोनों नाटकों की कथा रामायण पर आश्रित है। उक्त तीनों नाटकों का अध्ययन करने से स्पष्ट जान पड़ता है कि भवभूति के पास जो कुछ भी था उससे वह सन्तुष्ट था । भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए संसार में असमान संघर्षों का वर्णन करने में उसे विश्वास नहीं था । वह एक आदर्श गृहस्थ था। उसके अनुसार प्रेम केवल एक भावात्मक कार्य नहीं बल्कि आत्माओं का आत्मिक संयोग है । इसकी पूर्णता संतति के माध्यम से होती है । अतः उसने अन्तःपुर के वातावरण या बहुत सी पत्नियों को रखने वाले पात्रों को अपनी रचना का विषय नहीं बनाया । उसने उन परम्पराओं में अपने को नहीं बाँधा जिनका अन्य नाटककारों ने पालन किया । यही
१. उत्तररामचरित १-३६ और मालतीमाधव ६-१८ । २. उत्तररामचरित ३-१७ ।