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कालिदास के परवर्ती नाटककार
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उसने नाटक की रचना भवभूति की स्पर्धा में की। इसका निर्देश उन विद्वानों की प्रचलित उक्तियों द्वारा ही हो जाता है जिन्होंने माघ की भाँति भाषा पर अधिकार सम्बन्धी उसकी प्रशस्ति की है ।
भवभूतिमनादृत्य निर्वाणमतिना मया । मुरारिपदचिन्तायामिदमाधीयते मनः ॥ मुरारिपदचिन्तायां भवभूतेस्तु का कथा । भवभूति परित्यज्य मुरारिमुररीकुरु ।। मुरारिपदचिन्ता चेत् तदा माघे मति ( रति ) कुरु । मुरारिपदचिन्ता चेत् तदा माघे मतिं कुरु ।।
हनुमान ने रामायण की कथा के आधार पर महानाटक या हनुमन्नाटक लिखा है । यह माना जाता है कि रामायण के एक पात्र राम के आदर्श भक्त हनुमान ने अपने आराध्य देव राम का जीवन नाटक के रूप में लिखा है । उसे जब यह ज्ञात हुआ कि वाल्मीकि रामायण लिख रहे हैं, तब उसने यह सोचा कि उसका यह ग्रन्थ वाल्मीकि के ग्रन्थ के महत्त्व को नष्ट कर देगा, अतः उसने इस ग्रन्थ को समुद्र में डाल दिया । धारा के राजा भोज (१००५१०५४ ई०) की प्रेरणा से शिलाओं पर अपूर्ण रूप में लिखा हुआ यह नाटक संग्रह करके ग्रन्थरूप में प्रकट किया गया । इस परम्परा के अनुसार इसका समय १०५० ई० के लगभग प्रतीत होता है | आनन्दवर्धन ( ८५० ई०) ने इस नाटक का उल्लेख किया है, अतः अपूर्ण रूप में यह नाटक ८५० ई० से पूर्व अवश्य प्राप्त रहा होगा । इस नाटक के दो संस्करण आजकल प्राप्त हैं -- (१) मधुसूदन ने ९ अङ्कों में तैयार किया है । (२) दामोदर मिश्र ने १४ अङ्कों में तैयार किया है । इसमें प्राकृत का एक भी गद्यांश नहीं है और न विदूषक ही है । इसमें गद्यभाग बहुत थोड़ा है । वह भी वर्णनात्मक है ।
राजशेखर ( ६०० ई०) ने भीमट को पाँच नाटकों का लेखक माना है । अतः भीमट का समय ९०० ई० से पूर्व मानना चाहिए । उसके सभी नाटक