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कालिदास के परवर्ती नाटककार
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भास के नाटकों की बहुत सी समता प्राप्त होती है। इस नाटक से ज्ञात होता है कि दक्षिण भारत में यह नाटक सबसे प्रथम लिखा गया है। इसका समय ७०० ई० मानना उचित है । राम और सीता को आश्रमवासियों ने एक आश्चर्यजनक रत्न दिया था, उसी से इसका नाम पड़ा है । रावण ने नकली राम, सीता और लक्ष्मण बनाए थे । इस रत्न की सहायता से राम और सीता उसके छल से बच सके । अद्भुत रस इस नाटक का प्रमुख तत्त्व है । इस नाटक की प्रस्तावना से ज्ञात होता है कि उसने एक और नाटक उन्मादवासवदत्त लिखा है । यह नाटक अब नष्ट हो गया है ।
कन्नौज का राजा यशोवर्मा स्वयं कवि था और कवियों का आश्रयदाता था । नाटककार भवभूति और प्राकृत-भाषा का कवि वाक्पति उसके आश्रित कवि थे। लाटादित्य ने ७३३ ई० में उसको पराजित किया था। उसने रामायण की कथा के आधार पर ६ अङ्कों में रामाभ्युदय नाटक लिखा है। साहित्यशास्त्रियों के उद्धरणों से ही यह ज्ञात हुआ है । यह नष्ट हो गया है ।
भवभूति यशोवर्मा का आश्रित कवि था । वह वाक्पति का समकालीन था। उसका समय ७०० ई० के लगभग मानना चाहिए । उसने तीन नाटक लिखे हैं--महावीरचरित, मालतीमाधव और उत्तररामचरित । इन नाटकों की प्रस्तावना से ज्ञात होता है कि उसका वास्तविक नाम श्रीकण्ठ था । शिव-भक्त होने के कारण उसका नाम भवभूति पड़ा । उसके पिता का नाम नीलकण्ठ और माता का नाम जतुकर्णी था । भद्रगोपाल उसके पितामह थे । वह कश्यप गोत्र का था तथा कृष्णयजर्वेद को तैत्तिरीय शाखा का था। वह विदर्भ में पद्मपुर का निवासी था। वह व्याकरण, न्याय और मीमांसा का विशेषज्ञ था । वह साहित्यशास्त्र, उपनिषद्, सांख्य और योग का भी विशेष विद्वान् था । जब वह युवक था, तब वह अभिनेताओं के साथ बहुत प्रेम से घूमा करता था ।'
१. भवभूति म कविनिसर्गसौहृदेन भरतेष वर्तमानः । मालतीमाधव की प्रस्तावना।