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संस्कृत साहित्य का इतिहास
विद्वानों से मिला कि वे इसका प्रायश्चित्त बतावें । उन्होंने इसका प्रायश्चित्त बताया कि वह वेश्या के दूसरे पैर से मार खावे । संभवत: इस नाम के आधार पर ही बाण ने अपने एक ग्रन्थ का नाम मुकुटताडितक रक्खा है ।
हर्षवर्धन, जिसका अधिक प्रचलित नाम हर्षदेव है, ६०६ से ६४८ ई० के बीच में स्थाण्वीश्वर का राजा था । वह स्वयं कवि था और कवियों का प्राश्रयदाता था । उसके आश्रित कवियों में विशेष उल्लेखनीय वाण, मयूर, मातंगदिवाकर आदि थे । हर्ष तीन नाटकों का लेखक है - रत्नावली, प्रियदर्शिका और नागानन्द । पाश्चात्य विद्वान् हर्ष को इन तीन नाटकों का लेखक नहीं मानते हैं । उनका कथन है कि ये नाटक बाण या अन्य किसी उसके प्राश्रित कवि ने लिखे हैं । इन नाटकों की भाषा से स्पष्ट है कि बाण इन नाटकों का लेखक नहीं है । हर्ष को इन नाटकों का लेखक मानने की जो परम्परा है, उसको निराधार नहीं माना जा सकता है, क्योंकि चीनी यात्री ह्वेनसांग ने उल्लेख किया है कि हर्ष नागानन्द नाटक का लेखक है ।
रत्नावली नाटिका है । इसमें चार अंक है । इसमें वर्णन किया गया है कि किस प्रकार कौशाम्बी के राजा उदयन ने लंका की राजकुमारी सागरिका ( रत्नावली) से विवाह किया है । इसकी पूरी कथा मालविकाग्निमित्र की कथा के आधार पर बनाई गई है । वासवदत्ता ने सागरिका को उदयन से अधिक सम्पर्क रखने के कारण बन्दी बनाया था । उदयन ने एक जादूगर की सहायता से सागरिका को मुक्त किया । लंका के राजा के यहाँ से यह समाचार प्राप्त होने पर कि सागरिका उसकी पुत्री है, दोनों प्रेमियों का विवाह सम्बन्ध हो गया । जादूगर का दिव्य दृष्टि प्राप्त करना और सागरिका का बचकर निकलने के लिए रानी का वेष धारण करना, ये नाटककार की अपनी कल्पनाएँ हैं ।
प्रियदर्शिका भी नाटिका है । इसमें चार अंक हैं । इसमें राजा उदयन और राजकुमारी प्रारण्यिका ( प्रियदर्शिका ) के प्रेम का वर्णन है । इसकी कथा रत्नावली और मालविकाग्निमित्र से मिलती हुई है । इसमें लेखक ने उल्लेख