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संस्कृत साहित्य का इतिहास कहानियाँ हैं । संक्षिप्त संस्करण के रूप में रोचकता और प्रवाह आदि की दृष्टि से सोमदेव का यह ग्रन्थ क्षेमेन्द्र की बृहत्कथामंजरी से बहुत अधिक उत्कृष्ट है। इसकी शैली आकर्षक और सरल है ।
अवदानशतक में सौ वीर-गाथानों का संकलन है । ये कथाएँ बौद्ध विचारों के आधार पर हैं। प्रत्येक अवदान में एक प्राचीन कथा का वर्णन है और उससे कुछ नैतिक शिक्षा प्रस्तुत की गयी है। इन कथाओं से यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है कि मनुष्य पूर्वजन्म के कर्मों के अनुसार शरीर धारण करता है । इसके संग्रहकर्ता का नाम अज्ञात है । ये कथाएँ बहुत प्राचीन ज्ञात होती हैं। तृतीय शताब्दी ई० में इसका अनुवाद चीनी भाषा में हुआ है । इन कथाओं का संग्रह संभवतः ईसा की प्रथम शताब्दी में हुआ है । इसी के अनुकरण पर एक बाद का संग्रह ग्रन्थ दिव्यावदान है । इस ग्रन्थ की एक कथा का चीनी भाषा में अनुवाद २६५ ई० में हुआ है। यह संग्रह संभवत: अवदानशतक के कुछ ही समय बाद किया गया है । ये दोनों ग्रन्थ संस्कृत गद्य में हैं। इनमें स्थान-स्थान पर कुछ श्लोक संस्कृत या प्राकृत में दिये हुए हैं । अवदानशतक में कथाएँ ठीक ढंग से क्रमबद्ध की गयी है, परन्तु दिव्यावदानशतक में कोई क्रम आदि नहीं है । क्षेमेन्द्र (१०५० ई०) ने अवदानकल्पलता ग्रन्थ लिखा है । इसका दूसरा नाम बोधिसत्त्वावदानकल्पलता है । इसमें १०७ कथाएँ हैं, जो कि अवदानशतक तथा अन्य कथा-ग्रन्थों से ली गयी है।
आर्यशर की जातकमाला जातक-कथाओं का संग्रह है। इनमें बोधिसत्व के पूर्वजन्म की कथानों का वर्णन है । ये कथाएँ कहानी और संलाप के रूप में हैं। ये गद्य में हैं, परन्तु बीच-बीच में पद्य भी हैं। यह कहा जाता है कि जातक-कथाओं की संख्या पाँच सौ है । इनमें से कुछ कथाएँ मूलतः बौद्ध धर्म से संबद्ध नहीं ह । आर्यशूर संभवतः इन कथाओं का केवल संग्रहकर्ता है । इसके संग्रह का समय निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता है, किन्तु इसके संग्रह का समय ४०० ई० से पूर्व मानना चाहिए, क्योंकि ४३४ ई० में इसका चीनी भाषा में अनुवाद हुआ है ।