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संस्कृत साहित्य का इतिहास
इसकी प्राकृतों में विभाषा सम्बन्धी अन्तर भी प्राप्त होते हैं । इसमें ३७७ श्लोक हैं, जिनमें से ६६ श्लोक प्राकृत में हैं । सूत्रधार पहले संस्कृत में बोलता है, परन्तु बाद में प्राकृत में बोलने लगता है । वसन्तसेना संस्कृत और प्राकृत दोनों में बोलती है । पात्रों का प्रभावोत्पादक चरित्र-चित्रण,
जयुक्तता, सजीवता और गतिमत्ता, घटनाओं की अधिकता, अङ्क ५ को छोड़कर विस्तृत वर्णन का अभाव, सरल और स्पष्ट भाषा आदि के द्वारा यह नाटक वास्तविकता से पूर्ण ज्ञात होता है । यह वास्तविकता अन्य संस्कृत नाटकों में प्राप्य है ।
शूद्रक को पद्मप्रभृतक नामक भाग-रूपक का रचयिता भी मानते हैं । इसमें चोरों के प्रामाणिक प्राचार्य मूलदेव का देवदत्त के साथ प्रेम का वर्णन है । इसमें पाणिनि के पूर्ववर्ती एक आचार्य दत्तकलशि का उल्लेख है । इसमें एक प्रकरण ग्रन्थ कुमुद्वतीप्रकरण और एक प्राकृत काव्य कामदत्त का उल्लेख है । इन दोनों के लेखकों का नाम अज्ञात है और ये दोनों ग्रन्थ अप्राप्य हैं । भाषा की समता के आधार पर इसको शूद्रक की रचना माना जाता है ।
शूद्रक के बाद बौद्ध कवि अश्वघोष आता है, जिसने सौन्दरनन्द और बुद्ध-चरित काव्य लिखे हैं। उसने एक प्रकरण-ग्रन्थ लिखा है जिसका नाम है - शारिपुत्रप्रकरण या शारद्वतीपुत्रप्रकरण । इसमें 8 अङ्क हैं
।
इसमें गौतम
बुद्ध के द्वारा मौद्गल्यायन और शारिपुत्र को बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का
वर्णन है। इसमें अश्वघोष ने सभी नाटकीय नियमों का कठोरता के साथ पालन किया है । शारिपुत्रप्रकरण की हस्तलिखित प्रति के साथ ही दो और नाटकों की पूर्ण हस्तलिखित प्रति प्राप्त होती । ये दोनों नाटक सम्भवतः अश्वघोष की रचना हैं । इनके नाम अज्ञात हैं । है । दूसरे में पात्रों में से एक पात्र एक वेश्या एक उपवन में दिखाया गया है ।
इनमें से एक रूपकात्मक
मगघवती है । यह नाटक
इसके अतिरिक्त कुछ नाटक हैं, जिनका समय अज्ञात है । किन्तु वे ईसा की प्रथम दो शताब्दी में रक्खे जा सकते हैं । वररुचि ने एक भाग